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आदरणीय तेज़वीरजी, आपकी इस प्रस्तुति ने मोह लिया. सही बात है, सच्चाई अधिक मोहती है.
वैसे आपको मालूम न हो, आजकल सॉफ़्टस्किल क्लासेस में इण्टरव्यू के लिए तैयारी कराते वक्त यही बताया जाता है --
मैं इस या अमूक संस्था या कॉर्पोरेट या कम्पनी को ज्वाइन इसीलिए करना चाहता हूँ कि -
१) हमें घर चलाना है और हमारी सैलरी से ही ये होगा. यह कम्पनी अच्छी सैलरी देने केलिए विख्यात है.
२) मेरे काम से कम्पनी को फ़ायदा होगा वो फ़ायदा हमारे वेलबींग पर भी खर्च होगा.
३) कम्पनी के माध्यम से देश का विकास होगा. और अपना देश विकसित देशों की कतार में आयेगा.
इन क्रम को देखिये. मेरा इशारा आप समझ रहे हैं न ? आर्मी या मिलिटरी भी एक संस्था ही है. मैंइसे इग्नोर नहीं कर रहा.
सादर बधाइयाँ.
अच्छी लघुकथा हुई है आ० मनन कुमार सिंह जी I लेकिन अंत तक पहुँचते पहुँचते एक सपाट भाषण सी होकर रह गई I बहरहाल, सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें I
आदरणीय मनन जी, समसामयिक विषय चुनने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें| आदरणीय योगराज जी सर की सलाह संज्ञान में लेकर लघुकथा थोड़ी सी सुधार दें तो बहुत बढ़िया रचना हो सकती है|
आरक्षण्ा के नाम पर हो रही बंदरबांट के कटु सत्य को उजागर करने का प्रयत्न करती आपकी लघुकथा अंत तक पहुंचते पहुंचते कथा न रह कर एक स्टेटमेंट सा प्रभाव दे रही है। चरित्रों का वार्तालाप भी थोड़ा भ्रम उत्पन्न कर रहा है जैसे - /वो तो मैं नहीं समझता,पर पिछड़ों के विकास के लिए यह जरुरी है कि नहीं?तुम्ही बोलो तो।/ इस पंक्ित से यह आभास हो रहा है कि पात्र कथित पिछड़ी श्रेणी से सबंधित है । और कथा की प्रथम पंक्ित /अरे आरक्षण जरुरी है भई,चल अब हम भी अपने लिए माँग करते हैं, नजरें नचाते भोला बोला।/ का इस पंक्ित से कोई तालमेल नहीं बैठ रहा । बहरहाल आपने प्रयास हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
आदरणीय मनन कुमार जी,हार्दिक बधाई!बहुत गम्भीर विषय पर समयानुकूल लघुकथा !बेहद सुलझे तरिके से आपने आरक्षण की हवा निकाल दी !काश हमारे राजनीतिज्ञ भी कुछ ऐसी ही सोच रखते!
बहुत सही व समसामयिक विषय को गंभीरता से व सुन्दरता से प्रस्तुत करती लघुकथा। बधाई आ. मनन कुमार जी।
आरक्षण और ठगनु माँझी का परिवार ,बहुत खूब कटाक्ष हुई है। वाह !!!!!!
आरक्षण जातिगत आधार पर न होकर हमेशा आर्थिक स्थिति के आधार पर होना चाहिए ..सब राजनीतिग्य सभी पार्टियाँ इस बात को अच्छे से जानती हैं ..किन्तु वोट की खातिर ये परिभाषा बदल जाती है |
बधाई मनन कुमार जी इस विचारणीय विषय पर लिखा आपने |
आदरणीय मनन जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. रचना को वाचाल होने से बचाने की गुंजाइश है. सादर
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, लघुकथा की शुरुआत बहुत शानदार हुई थी लेकिन अंत तक जाते-जाते भटक गई है।
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