For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-63

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 63 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा -ए-तरह अज़ीम शायर जनाब  "बशीर बद्र" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है |

 
"ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे"

1212 1122 1212 112

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन

(बह्रे मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- ही लगे 
काफिया :- आ (हवा, खुदा, नया, दुआ, खिला आदि)

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 सितम्बर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 14003

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय पंकजजी आपको इस ग़ज़ल के लिये हर्दिक बधाई
आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर; सादर प्रणाम्।

कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।.........सुन्दर भाव...!

हिंदुस्तान की जय हो।
सादर अभिवादन।।

सुनो तो हिचकियों जाकर वहीं पे गरजो ज़रा।
कि उसको मैंने यहाँ याद है किया ही लगे।।---क्या बात कही है

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आ.पंकज कुमार जी

सादर अभिवादन आदरणीय नीरज शर्मा मैम।

वाह वाह आदरणीय पंकज जी कमाल कर दिया आपने ,,,,, शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

ज़रा बहार की बीमार को दवा ही लगे।........... (इसे समय दे ग़ज़ल का पहला मिसरा है इसलिए इसका दमदार होना जुरुरी है वैसे मतले की आदरणीय रवि जी ने बहुत तारीफ़ की है मगर मेरी अल्पज्ञता के कारण शायद मैं इसे समझ नहीं पाया. इस पर मार्गदर्शन भी निवेदित है)
सदा वो खुश रहे उसको मेरी दुआ ही लगे।।........... बढ़िया मतला 

भले ही बात वो मेरी नहीं सुना करता।
मगर हूँ आज भी सजदे में वो खुदा ही लगे।।......... वाह बहुत बढ़िया शेर कहा है 

सुनो तो हिचकियों जाकर वहीं पे गरजो ज़रा।
कि उसको मैंने यहाँ याद है किया ही लगे।।............ हिचकी और याद करने पर बहुत बढ़िया शेर कहे गए है ... ये शेर बहुत कमज़ोर हो गया है और ग़ज़ल के सौन्दर्य को प्रभावित भी कर रहा है.

सुनो जी मेघ मेरे यार के नगर में बरस।
यहाँ पे पीर है कितनी उसे पता ही लगे।।............ ये शेर समय चाह रहा है पंकज जी ,.... बहुत बढ़िया शेर निकल के आएगा (सुनो के साथ बरसो और सुन के साथ बरस जमेगा.)

फ़िज़ा के हुश्न का दीदार तो ज़रा मैं करूँ।
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे।। अय हय ...क्या बढ़िया गिरह लगाईं है ,,,बहुत खूब ,,,,दिल से दाद 

कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।........... बढ़िया शेर ,,,,,,,, शेर की गहराई ने मुग्ध कर दिया वाह 

गज़ब का नूर वहाँ दूर किसका है दिखता।
वसन ये दूर करो तब तो वो मेरा ही लगे।।........... वाह वाह बहुत बढ़िया 

नहीं नहीं ये मेरा रंग ढंग बदलो ज़रा।
ये फर्द गर्द से खाली हो कुछ धुला ही लगे।।.......... क्या बात है शानदार ....दिल जीतू शेर 

कोई तो झाँक रहा मन के आईने में यहाँ।
ये शख़्स कौन है मुझको तो ये नया ही लगे।।......... वाह वाह वाह पंकज जी दिल खुश कर दिया,,,, क्या खूब कहा है.....

निगाह सूख गयी पानी मर गया है तेरा।
हुई ख़ता है तो 'पंकज' को अब सज़ा ही लगे।।...... बढ़िया मक्ता (खता की जाती है खता किया नहीं जाता इसलिए ठीक लगे तो )

मतला का उला और मेघ वाला शेर थोड़ा सा समय चाहता है. बाकी ग़ज़ल जिंदाबाद हुई है. ढेर सी दाद दाद दाद ......... आपकी ग़ज़ल ने दिल जीत लिया. वाह .... ऐसे ही बढ़िया बढ़िया ग़ज़ल लिखते रहे, ढेर सारी दाद और दुआएं 

आदरणीय मिथिलेश सर, सादर अभिवादन।।
मैं तो अभी प्रतिक्रिया पढ़ के प्रसन्न हूँ।।

मेरे कहे को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार पंकज जी 

आ० भाई पंकज जी हार्दिक बधाई l

पंकज जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है इस पर देरी से आने का खेद है, कुछ व्यस्त थी |ग़ज़ल पर मिथिलेश भैया ने जो इस्स्लाह दी है उससे मैं सहमत हूँ मतले के उला को और सुधार जा सकता है ताकि सानी से कुछ राब्ता कायम हो |  

भले ही बात वो मेरी नहीं सुना करता।
मगर हूँ आज भी सजदे में वो खुदा ही लगे।।---बहुत खूब 

हिचकियों वाला शेर प्रभावित नहीं कर पाया 

सुनो जी मेघ मेरे यार के शहर में बरस।----सुनो के साथ बरसो होना चाहिए था ---अरे ओ मेघ मेरे यार कर सकते हो 
यहाँ पे पीर है कितनी उसे पता ही लगे।।

गिरह बहुत सुन्दर लगाई है 

कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।--रूह स्त्री वाचक है उसके साथ मिला नहीं चलेगा मिली होना चाहिए जो यहाँ नहीं हो सकता 

गज़ब का नूर वहाँ दूर किसका है दिखता।
वसन ये दूर करो तब तो वो मेरा ही लगे।।--इस शेर को मैं समझ नहीं पाई 

नहीं नहीं ये मेरा रंग ढंग बदलो ज़रा।----शुरू में नहीं नहीं लगने से बाद में जरा शब्द जो प्रार्थना/रिक्वेस्ट के तौर पर प्रयुक्त होता है मेरे ख़याल से नहीं आना चाहिए बदलो अभी  कर सकते हो  क्यूंकि शुरुमे दो बार नहीं नहीं आने से भाव आदेश के आ रहे हैं   
ये फर्द गर्द से खाली हो कुछ धुला ही लगे।।

कोई तो झाँक रहा मन के आईने में यहाँ।
ये शख़्स कौन है मुझको तो ये नया ही लगे।।---बहुत  खूब 

निगाह सूख गयी पानी मर गया है तेरा।
किया ख़ता है जो पंकज तो अब सज़ा ही लगे।।---खता मेरे ख़याल से स्त्रीलिंग है तो किया नहीं आएगा की है खता कर सकते हैं 

आपनें मुझे आशीष दिया; इसके लिए सादर प्रणाम्।

सुझावों की सहायता से ही सीख रहा हूँ; यथाशीघ्र संशोधन किया जाएगा।।

आपकी प्रतिक्रिया नें मुझे निश्चित रूप से बल प्रदान किया है।

एक बार पुनः प्रणाम्।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service