परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 63 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा -ए-तरह अज़ीम शायर जनाब "बशीर बद्र" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है |
"ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे"
1212 1122 1212 112
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।.........सुन्दर भाव...!
सुनो तो हिचकियों जाकर वहीं पे गरजो ज़रा।
कि उसको मैंने यहाँ याद है किया ही लगे।।---क्या बात कही है
सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आ.पंकज कुमार जी
वाह वाह आदरणीय पंकज जी कमाल कर दिया आपने ,,,,, शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
ज़रा बहार की बीमार को दवा ही लगे।........... (इसे समय दे ग़ज़ल का पहला मिसरा है इसलिए इसका दमदार होना जुरुरी है वैसे मतले की आदरणीय रवि जी ने बहुत तारीफ़ की है मगर मेरी अल्पज्ञता के कारण शायद मैं इसे समझ नहीं पाया. इस पर मार्गदर्शन भी निवेदित है)
सदा वो खुश रहे उसको मेरी दुआ ही लगे।।........... बढ़िया मतला
भले ही बात वो मेरी नहीं सुना करता।
मगर हूँ आज भी सजदे में वो खुदा ही लगे।।......... वाह बहुत बढ़िया शेर कहा है
सुनो तो हिचकियों जाकर वहीं पे गरजो ज़रा।
कि उसको मैंने यहाँ याद है किया ही लगे।।............ हिचकी और याद करने पर बहुत बढ़िया शेर कहे गए है ... ये शेर बहुत कमज़ोर हो गया है और ग़ज़ल के सौन्दर्य को प्रभावित भी कर रहा है.
सुनो जी मेघ मेरे यार के नगर में बरस।
यहाँ पे पीर है कितनी उसे पता ही लगे।।............ ये शेर समय चाह रहा है पंकज जी ,.... बहुत बढ़िया शेर निकल के आएगा (सुनो के साथ बरसो और सुन के साथ बरस जमेगा.)
फ़िज़ा के हुश्न का दीदार तो ज़रा मैं करूँ।
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे।। अय हय ...क्या बढ़िया गिरह लगाईं है ,,,बहुत खूब ,,,,दिल से दाद
कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।........... बढ़िया शेर ,,,,,,,, शेर की गहराई ने मुग्ध कर दिया वाह
गज़ब का नूर वहाँ दूर किसका है दिखता।
वसन ये दूर करो तब तो वो मेरा ही लगे।।........... वाह वाह बहुत बढ़िया
नहीं नहीं ये मेरा रंग ढंग बदलो ज़रा।
ये फर्द गर्द से खाली हो कुछ धुला ही लगे।।.......... क्या बात है शानदार ....दिल जीतू शेर
कोई तो झाँक रहा मन के आईने में यहाँ।
ये शख़्स कौन है मुझको तो ये नया ही लगे।।......... वाह वाह वाह पंकज जी दिल खुश कर दिया,,,, क्या खूब कहा है.....
निगाह सूख गयी पानी मर गया है तेरा।
हुई ख़ता है तो 'पंकज' को अब सज़ा ही लगे।।...... बढ़िया मक्ता (खता की जाती है खता किया नहीं जाता इसलिए ठीक लगे तो )
मतला का उला और मेघ वाला शेर थोड़ा सा समय चाहता है. बाकी ग़ज़ल जिंदाबाद हुई है. ढेर सी दाद दाद दाद ......... आपकी ग़ज़ल ने दिल जीत लिया. वाह .... ऐसे ही बढ़िया बढ़िया ग़ज़ल लिखते रहे, ढेर सारी दाद और दुआएं
मेरे कहे को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार पंकज जी
आ० भाई पंकज जी हार्दिक बधाई l
पंकज जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है इस पर देरी से आने का खेद है, कुछ व्यस्त थी |ग़ज़ल पर मिथिलेश भैया ने जो इस्स्लाह दी है उससे मैं सहमत हूँ मतले के उला को और सुधार जा सकता है ताकि सानी से कुछ राब्ता कायम हो |
भले ही बात वो मेरी नहीं सुना करता।
मगर हूँ आज भी सजदे में वो खुदा ही लगे।।---बहुत खूब
हिचकियों वाला शेर प्रभावित नहीं कर पाया
सुनो जी मेघ मेरे यार के शहर में बरस।----सुनो के साथ बरसो होना चाहिए था ---अरे ओ मेघ मेरे यार कर सकते हो
यहाँ पे पीर है कितनी उसे पता ही लगे।।
गिरह बहुत सुन्दर लगाई है
कई दिनों से नहीं रूह का दीदार हुआ।
ज़रा ये पर्द हटाओ तो वो मिला ही लगे।।--रूह स्त्री वाचक है उसके साथ मिला नहीं चलेगा मिली होना चाहिए जो यहाँ नहीं हो सकता
गज़ब का नूर वहाँ दूर किसका है दिखता।
वसन ये दूर करो तब तो वो मेरा ही लगे।।--इस शेर को मैं समझ नहीं पाई
नहीं नहीं ये मेरा रंग ढंग बदलो ज़रा।----शुरू में नहीं नहीं लगने से बाद में जरा शब्द जो प्रार्थना/रिक्वेस्ट के तौर पर प्रयुक्त होता है मेरे ख़याल से नहीं आना चाहिए बदलो अभी कर सकते हो क्यूंकि शुरुमे दो बार नहीं नहीं आने से भाव आदेश के आ रहे हैं
ये फर्द गर्द से खाली हो कुछ धुला ही लगे।।
कोई तो झाँक रहा मन के आईने में यहाँ।
ये शख़्स कौन है मुझको तो ये नया ही लगे।।---बहुत खूब
निगाह सूख गयी पानी मर गया है तेरा।
किया ख़ता है जो पंकज तो अब सज़ा ही लगे।।---खता मेरे ख़याल से स्त्रीलिंग है तो किया नहीं आएगा की है खता कर सकते हैं
आपनें मुझे आशीष दिया; इसके लिए सादर प्रणाम्।
सुझावों की सहायता से ही सीख रहा हूँ; यथाशीघ्र संशोधन किया जाएगा।।
आपकी प्रतिक्रिया नें मुझे निश्चित रूप से बल प्रदान किया है।
एक बार पुनः प्रणाम्।
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