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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-9 (विषय: आकांक्षा)

आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले आठ आयोजन बेहद सफल रहे। नए पुराने सभी लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इनमें सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया। कई नए रचनाकारों की आमद ने आयोजन को चार चाँद लगाये I इस आयोजनों में न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुई। गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए, जिससे कि यह गोष्ठियाँ एक वर्कशॉप का रूप धारण कर गईं। इन आयोजनों के विषय आसान नहीं थे, किन्तु हमारे रचनाकारों ने बड़ी संख्या में स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ओबीओ लघुकथा स्कूल दिन प्रतिदिन तरक्की की नई मंजिलें छू रहा  है I यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि यह सभी आयोजन लघुकथा विधा के क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुए हैं । तो साथियो, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-9  
विषय : "आकांक्षा"
अवधि : 30-12-2015 से 31-12-2015 
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 30 दिसंबर 2015 दिन बुधवार से 31 दिसंबर 2015 दिन गुरूवार की समाप्ति तक)
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  30 दिसंबर 2015 दिन बुधवार  लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२.सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७.  नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय सुनील वर्माजी,
आपकी प्रस्तुति ने बहुत ही आशाएँ जगायी हैं. मैं आपकी लघुकथा को सम्मोहित हुआ-सा पढ़ता चला गया. जबतक कि ये अंतिम पंक्तियाँ न आगयीं --

आँख अगली सुबह खुली जब पल्लवी ने आकर आवाज देते हुए जगाया "सुनिये..उठिये..चाय तैयार है"
प्रत्युत्तर में रजाई के अंदर से ही आवाज आयी "आप चलिए.. मैं हाथ मुँह धोकर आता हूँ।"
अपने पति के मुँह से अपने लिये 'आप' का संबोधन सुनकर वर्षों से अपने हिस्से का सम्मान पाने की आकांक्षा पाले पल्लवी के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी।

सारा सम्मोहन काफ़ुर हो गया साहब ! क्या कोई भावुक एवं संवेदनशील पत्नी अपने पति को ऐसी दशा में देख कर अपनी दमित आह को फलीभूत होता देखना चाहेगी ? इस तरह से तो कत्तई नहीं.

अब आपकी लेखकीय क्षमता इसी बात पर निर्भर करेगी कि आप उपर्युक्त वाक्य-समुच्चय को कैसे सुधार कर उक्त माहौल को व्यावहारिक बना पाते हैं और लेखन ऐसा हो कि पत्नी की अकांक्षापूर्ति भी आरोपित न लगे. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? कारण कि आपकी कथा यह भी इंगित कर रही है कि पत्नी अपने पति के थपरियाये जाने की राह देख रही थी. हो सकता है, देख भी रही हो. लेकिन ऐसे ? शायद नहीं.

शुभेच्छाएँ

//लेखन ऐसा हो कि पत्नी की अकांक्षापूर्ति भी आरोपित न लगे. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? कारण कि आपकी कथा यह भी इंगित कर रही है कि पत्नी अपने पति के थपरियाये जाने की राह देख रही थी. हो सकता है, देख भी रही हो. लेकिन ऐसे ? शायद नहीं.//-------------  चौंक उठी हूँ एकदम से !  बड़ी ही सूक्ष्म दृष्टिकोण को इंगित किया है आपने अपनी इस समीक्षात्मक विश्लेषण में। इस दृष्टिकोण ने मुझे मुग्ध किया है। सादर। 

मैं भी उक्त वाक्य-समुच्चय से हैरान था । मैंने अपनी टिप्पणी में महिला पुलिस की भूमिका से असहमति जताई थी । सिर्फ 'आप' शब्द से सम्मान नहीं मिला करता । यह शब्द तो कोरी औपचारिकता मात्र है । नारी का या पति-पत्नी का पारस्परिक सम्मान दिल से व आचरण से अभिव्यक्त होता है ! सादर
बहुत बढ़िया परिमार्जन रहेगा यह । अंतिम पंक्ति भी विषय को परिभाषित कर रही है - //अपने पति के खोये सम्मान को तलाशती पल्लवी को जब साथ में अपना खोया हुआ सम्मान भी मिला तो उसने आगे बढकर तरुण को गले लगा लिया।//... वााााह ... बहुत खूब आदरणीय सुनील वर्मा जी । पति द्वारा भविष्य में नशा न करने व पत्नी का मान बनाये रखने की आकांक्षा भी किसी सुंदर वाक्य द्वारा इसी में कहीं जोड़ी जा सकती है । सादर

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, 

//पति द्वारा भविष्य में नशा न करने व पत्नी का मान बनाये रखने की आकांक्षा भी किसी सुंदर वाक्य द्वारा इसी में कहीं जोड़ी जा सकती है //

जैसा कि मैंने समझा है, लघुकथा वस्तुतः एक पल अथवा कालखण्ड विशेष की किसी नाटकीय घटना को उभारने की विधा है. अतः बहुत कुछ कहना या इन्फ़्यूज करना घनीभूत हुई भावों की सान्द्रता को विरल कर देना है. इसी के ऊपर आदरणीय योगराजभाई बार-बार ज़ोर देते रहे हैं. विश्वास है, मै सही समझ कर ही निवेदन कर पाया. सादर

वाह सुनील भाई !
बहुत दूर जायेंगे आप। कथानक आपको ढूँढना नहीं पड़ता खुद आपके पास आ जाता है। यही आपके लेखन की शक्ति है।
पारिवारिक उलझनों में घिर कर लिखना कभी न छोड़ें , यही दुआ है।

हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी!सदैव की भांति इस बार भी आपने उत्कृष्ट लघुकथा प्रस्तुत की है!अपने जीवन साथी का सम्मान ना करनेवाले को उचित दंड ने सदैव के लिये सुधार दिया!बहुत खूब!

प्रिय भाई , आपकी कथा पर प्रस्तुत नहीं होता , वह खींच लाती है मुझे। मुझे भी मजा आता है जब वह मेरी बांह थाम आप तक ले आती है चिंता मत करो , आपके कान उमेठने या पीठ थपथपाने आता रहूंगा।

थप्पड़ से आया परिवर्तन कितने दिन रहेगा ,कथा का शिल्प और कथ्य दोनों बढ़िया है ,बधाई स्वीकारें सुनील जी 

बिगडैल के होश ठिकाने  आ गए और महिला की इज्जत करने लगा | सुंदर  सन्देश साथ ही पत्नी की सम्मान पाने के अभिलाषा पूरी हो गई पर देर  हो गई -  1/ मतलब रात  गई बात गई,

2. जब पतिदेव  के  कोई  अन्य औरत थप्पड़  जड़ दे, तो पत्नी स्वयं को भी अपमानित ही महसूस करती है और क्रोध  आता है | इस पर उसकी प्रतिक्रिया जरुर आनी  चाहिए | 

फिर भी संतोष प्रद प्रस्तुति के लिए बधाई 

लातों के भूत बातों से कैसे मान जाते.. सुंदर कथा बधाई आ० सुनील वर्मा जी 

बहुत अच्छी प्रस्तुति , बस अंत थोड़ा और बेहतर करने की जरुरत है | बहुत बहुत बधाई आपको

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