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आदरणीय सुनील वर्माजी,
आपकी प्रस्तुति ने बहुत ही आशाएँ जगायी हैं. मैं आपकी लघुकथा को सम्मोहित हुआ-सा पढ़ता चला गया. जबतक कि ये अंतिम पंक्तियाँ न आगयीं --
आँख अगली सुबह खुली जब पल्लवी ने आकर आवाज देते हुए जगाया "सुनिये..उठिये..चाय तैयार है"
प्रत्युत्तर में रजाई के अंदर से ही आवाज आयी "आप चलिए.. मैं हाथ मुँह धोकर आता हूँ।"
अपने पति के मुँह से अपने लिये 'आप' का संबोधन सुनकर वर्षों से अपने हिस्से का सम्मान पाने की आकांक्षा पाले पल्लवी के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी।
सारा सम्मोहन काफ़ुर हो गया साहब ! क्या कोई भावुक एवं संवेदनशील पत्नी अपने पति को ऐसी दशा में देख कर अपनी दमित आह को फलीभूत होता देखना चाहेगी ? इस तरह से तो कत्तई नहीं.
अब आपकी लेखकीय क्षमता इसी बात पर निर्भर करेगी कि आप उपर्युक्त वाक्य-समुच्चय को कैसे सुधार कर उक्त माहौल को व्यावहारिक बना पाते हैं और लेखन ऐसा हो कि पत्नी की अकांक्षापूर्ति भी आरोपित न लगे. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? कारण कि आपकी कथा यह भी इंगित कर रही है कि पत्नी अपने पति के थपरियाये जाने की राह देख रही थी. हो सकता है, देख भी रही हो. लेकिन ऐसे ? शायद नहीं.
शुभेच्छाएँ
//लेखन ऐसा हो कि पत्नी की अकांक्षापूर्ति भी आरोपित न लगे. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? कारण कि आपकी कथा यह भी इंगित कर रही है कि पत्नी अपने पति के थपरियाये जाने की राह देख रही थी. हो सकता है, देख भी रही हो. लेकिन ऐसे ? शायद नहीं.//------------- चौंक उठी हूँ एकदम से ! बड़ी ही सूक्ष्म दृष्टिकोण को इंगित किया है आपने अपनी इस समीक्षात्मक विश्लेषण में। इस दृष्टिकोण ने मुझे मुग्ध किया है। सादर।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी,
//पति द्वारा भविष्य में नशा न करने व पत्नी का मान बनाये रखने की आकांक्षा भी किसी सुंदर वाक्य द्वारा इसी में कहीं जोड़ी जा सकती है //
जैसा कि मैंने समझा है, लघुकथा वस्तुतः एक पल अथवा कालखण्ड विशेष की किसी नाटकीय घटना को उभारने की विधा है. अतः बहुत कुछ कहना या इन्फ़्यूज करना घनीभूत हुई भावों की सान्द्रता को विरल कर देना है. इसी के ऊपर आदरणीय योगराजभाई बार-बार ज़ोर देते रहे हैं. विश्वास है, मै सही समझ कर ही निवेदन कर पाया. सादर
वाह सुनील भाई !
बहुत दूर जायेंगे आप। कथानक आपको ढूँढना नहीं पड़ता खुद आपके पास आ जाता है। यही आपके लेखन की शक्ति है।
पारिवारिक उलझनों में घिर कर लिखना कभी न छोड़ें , यही दुआ है।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी!सदैव की भांति इस बार भी आपने उत्कृष्ट लघुकथा प्रस्तुत की है!अपने जीवन साथी का सम्मान ना करनेवाले को उचित दंड ने सदैव के लिये सुधार दिया!बहुत खूब!
प्रिय भाई , आपकी कथा पर प्रस्तुत नहीं होता , वह खींच लाती है मुझे। मुझे भी मजा आता है जब वह मेरी बांह थाम आप तक ले आती है चिंता मत करो , आपके कान उमेठने या पीठ थपथपाने आता रहूंगा।
थप्पड़ से आया परिवर्तन कितने दिन रहेगा ,कथा का शिल्प और कथ्य दोनों बढ़िया है ,बधाई स्वीकारें सुनील जी
बिगडैल के होश ठिकाने आ गए और महिला की इज्जत करने लगा | सुंदर सन्देश साथ ही पत्नी की सम्मान पाने के अभिलाषा पूरी हो गई पर देर हो गई - 1/ मतलब रात गई बात गई,
2. जब पतिदेव के कोई अन्य औरत थप्पड़ जड़ दे, तो पत्नी स्वयं को भी अपमानित ही महसूस करती है और क्रोध आता है | इस पर उसकी प्रतिक्रिया जरुर आनी चाहिए |
फिर भी संतोष प्रद प्रस्तुति के लिए बधाई
लातों के भूत बातों से कैसे मान जाते.. सुंदर कथा बधाई आ० सुनील वर्मा जी
बहुत अच्छी प्रस्तुति , बस अंत थोड़ा और बेहतर करने की जरुरत है | बहुत बहुत बधाई आपको
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