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प्रतिभा अपाहिज तो हरगिज ही नहीं होती। बहुत खूबी से आपने साबित कर भी दिया। अगली बार , क्षत्रिय सरकार ( गोष्ठी में )
आदरणीय प्रदीप नील जी आप ने लघुकथा पर अपनी अमूल्य राय दी. आप का शुक्रिया .
सत्य घटना पर आधारित अच्छी लघुकथा रची है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी I मेरा मानना है कि किसी भी सत्य घटना को विषय बनाते हुए बेहद सावधान रहने की आवश्यकता होती है I ज़रूरी नहीं कि आप उस घटना का विवरण वैसे ही दें जैसे कि वह वास्तव में घटी हो I दरअसल उस घटना को विषय बनाकर उसमे अपनी कल्पनाशीलता का पुट देना एक लघुकथाकार के लिए बेहद आवश्यक है I इस घटना को यदि भारतीय परिपेक्ष्य में ढाल कर लघुकथा कही जाती तो उसका प्रभाव और बढ़ जाता, क्योंकि इस प्रकार हवाई जहाज़ का निर्माण शायद भारतीय मानसिकता के गले से उतरने वाला नहीं है I
आदरणीय योगराज जी आप का कहना सही है.यह एक सच्ची घटना हो कर भी भारतीय के गले नहीं उतर सकती है. यब बात मैं ने सोची नहीं थी. शायद यह मेरी लेखन में कमी रह गई. मैं इसे भारतीय परिपेक्ष्य में ढाल नहीं पाया. आगे से ध्यान रखूँगा.
यह एक सच्ची घटना पर आधारित है.
///नई दिल्ली। जिंदगी के 45 साल पूरे कर चुके केरल के साजी थॉमस पर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया फक्र कर सकती है। क्योंकि बोलने के साथ-साथ सुनने की भी क्षमता नहीं रखने वाले इस इंसान ऐसा ही काम कर दिखाया जो अच्छे-अच्छे पढ़े लिखे इंजीनियर नहीं कर पाते। थॉमस ने अपनी अपंगता के बावजूद खुद का जेट बना दिया। इतना ही नहीं बल्कि जब वो अपने इस दुर्लभ और बेहद किफायती जेट से फर्राटा भरे तो दुनिया ने सलाम किया।
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी!आपकी लघुकथा सच में अति उत्तम है मगर मेरी राय में यह लघुकथा आपके क़द के मुताबिक़ नहीं बन पाई!लघुकथाकारों की ज़मात में आपका एक विशिष्ट स्थान है!उसके दृष्टिकोण से परखा जाय तो यह लघुकथा ओम जी के स्तर को नहीं छू सकी!हो सकता है कि मैं गलत होऊं पर ये मेरी निजी राय है!सादर!
आदरणीय तेज वीर जी ऐसा कहा कर आप ने मेरा कद बहुत ऊँचा कर दिया. मुझे आप के कद का ही रहने दे. सादर.
शारीरिक अपंगता आड़े नहीं आती जिसमें हुनर हो या कुछ कर गुजरने की चाह ऐसी विडीओ भरी पड़ी हैं जिसमे बिना पैरों वाले हैरत अंगेज काम कर दिखाते हैं ..एक प्रेरणास्पद लघु कथा पर हार्दिक बधाई आपको आ० ओम प्रकाश जी
आदरणीय राजेश कुमारी जी आप का कहना सही है. ये केरल के थामस जी पर आधारित एक लघुकथा थी. शुक्रिया आप का .
अगर दृढ इच्छा हो तो क्या नहीं किया जा सकता , बढ़िया रचना , बधाई आपको
सत्य कथा को अच्छा शिल्पी जामा पहनाया है आपने हार्दीक बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाशजी
आकांक्षाओं के पंख "
"क्या बकवास कर रहे हैं आप? मैं उससे शादी क्यों कर लूँ ? पिछले पांच वर्ष से तो आप वायदा करते रहे और अब उससे शादी करने को कह रहें हैं, क्यों ?"
"अरे! क्या तुम जानती नहीं की अब मेरी बेटी का ब्याह होने वाला हैं और अब मैं तुमसे कोई सम्बन्ध नही रख सकता।"
" इसका मतलब आप मुझे खिलौना समझ खेलते रहे? "
" नहीं , यह बात तुम्हारे माता-पिता पहले ही जानते थे की मैं तुम्हे किसी के साथ सेटल कर दूंगा और फिर मैं बराबर तुम पर अपनी दौलत लुटाता रहा हूँ ।"
"अर्थात मुझे तुमने अपनी रखैल बना रखा था! "
" ऐसा ही समझ लो, फिर तुम जैसी लड़की का और क्या हो सकता हैं जो अपने पति तो क्या जन्म दी बेटी को भी पैसे के लिए लात मार आयी थी "
"ओह! ताना मार रहे हो ? चले जाओ यहाँ से और अपनी शक्ल अब कभी मत दिखाना " रजनीश को दुत्कार निम्मी गहरे अवसाद में घिरती अतीत की गलियों में विचरण करने लगी ।चमक-दमक से भरा जीवन जीने की आकांक्षा की ओर बढ़ते कदमों ने उसे आज वाकई में कहीं का नहीं छोड़ा था पूर्व पति निलय के कहे शब्द उसके दिलोदिमाग पर हथोड़े सा वार कर रहे थे-
"आकांक्षाओं के पंखों की कोई सीमा नहीं होती।उनको पाने की चाह में तुम कटी पतंग की तरह कही की नहीं रहोगी।"
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