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वाह जोशी जी।
एक ही धागे से कथा बुन दी और गाँठ भी नहीं पड़ी कहीं। शिल्प और जोशी जी पर्याय हो गए।
श्रवण कुमारों को आइना दिखाते रहना जरुरी है , आपने दिखा दिया
बधाई स्वीकारें
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जी!आज की पीढी कोई समझौता करने को तैयार नहीं!उनकी महत्वाकांक्षा सर्वोपरि!बेतरीन संदेश देती लघुकथा!
अपनी खुदगर्जी के आगे कुछ भी कर गुजरना , बहुत बढ़िया रचना | बधाई आपको
उफ़ ये बच्चे माता-पिता के महत्व तब समझतें हैं जब ये खुद उसी स्थान पर होते हैं.. काश.... काश कोई समझा सकता इनको.. बहुत अच्छी और्भावुक कर देने वाली कथा पर बधाई आ० विजय जोशी जी..
प्रदत्त विषय को सार्थक करती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विजय जोशी जी
वाकई में ये कथा जबरदस्त बन पड़ी है। सर जी के सम्पादन ने तो कथा में चार चाँद लगा दिया है। आप किस्मत वाले हुए आदरणीय विजय जी :))))
बहुत सुंदर और संवेदनशील लघुकथा के लिए बधाई
_/\_
"अंतिम इच्छा"
कई वर्षों से चलते आ रहे मुकदमे का निर्णय आज लगभग तय ही था| वो कटघरे में खड़ी एक व्यक्ति की तरफ इशारा कर न्यायाधीश से रोते हुए कह रही थी, "सर, इसी ने अपने दोस्त के साथ मिलकर मेरी लज्जा भंग करने की कोशिश की...... और उसी समय इसका वो दोस्त मेरे हाथों से..... मारा गया| इन लोगों के झूठ का विश्वास मत करिये..."
प्रभावशाली व्यक्ति के उस बेटे के विरुद्ध कोई गवाह और सबूत नहीं मिल पाया था, जबकि उसने एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी थी, उसके कई प्रमाण थे| न्यायाधीश ने उसे मृत्युदण्ड दे दिया|
निर्णय सुनते ही उसकी आँखें पानी से भर गयीं, फिर भी खुदको संयत कर के उसने भर्राये गले से कहा, "सर.... एक आखिरी इच्छा है, वो पूरी कर दीजिये..."
"क्या?" न्यायाधीश ने पूछा|
"मैं न्यायालय को एक दान देना चाहती हूँ..."
"किस चीज़ का दान?"
"एक कैंची का.... जिससे न्याय की यह देवी अपने आँखों पर लगी पट्टी काट सके| अब इसे आवाज़ और आँसूंओं के स्पर्श की सच्चाई समझ में नहीं आती और तराज़ू के पलड़े भारी क्यों है वो भी इसे पता नहीं चल रहा|"
(मौलिक और अप्रकाशित)
लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी स्नेहिल टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सतविंदर कुमार जी |
लघुकथा के इस प्रयास को ठीक मान कर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी साहब|
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