For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ दोहे-प्रीत पर ..........डॉ० प्राची सिंह

मृग छाया सी प्रीत बस, दे समीप्य का भास
मधुर मोहिनी बन करे, बैरी खुद की श्वास

बाह्य प्राप्ति से पूर्णता, मिलती कब पर्याप्त 

मिले न कुछ वो भी मिटे, जो भी हो निज व्याप्त

नहीं एक भी वायदा, नहीं बंध से युक्त 
प्रीत प्रखर निभती तभी, मन हों जब उन्मुक्त

प्रीत न कलुषित कर कभी, आरोपित कर चाह
मन इच्छित हर कामना, लीले सलिल प्रवाह

अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1065

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 5, 2016 at 11:11pm

दोहों की सराहना के लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 9, 2016 at 11:03pm

पहला दोहा गड़बड़ है. 

बाकियों पर सुधीजनों ने अपनी राय अभिव्यक्त की है. मैं भी उन कहे से सहमत हूँ. 

प्रीत न कलुषित कर कभी -- इतना आदेशात्मक होना क्यों आवश्यक लगा ? कर कभी को कीजिये करना मेरी समझ से उचित होता. 

है न ?

शुभ-शुभ

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on January 29, 2016 at 7:30pm

डॉ प्राची जी प्रीत विषय को केंद्रित कर लिखे गए सुन्दर दोहे मन को छू गए। .
बधाई
 भ्रमर ५

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 13, 2016 at 11:16am

प्रीत पर अति सुंदर भाव रचित दोहे हुए है | मुझे भी श्री  अरुण कुमार निगम जे बात ठीक लग रही है | पास में ही पानी का आभास होने से अपनी तृष्णा शांत करने के लिए दौड़ता है | इसलिए  - मृग तृष्णा  सी प्रेत बस |

अंतिम दोहा यूँ भी हो सकता है -

अकथ मौन करता ह्रदय, मन ही मन संवाद,

जैसी जिसकी सोच हो, वैसा ही अनुवाद  | ---  बहुत  बहुत  बधाई  आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on January 10, 2016 at 3:03pm

वाह आदरणीया प्राची जी , प्रीत पर सुकोमल दोहों ने मुग्ध कर दिया. 

मृग छाला सी प्रीत समीप्य का भास कैसे दे सकती है ?

मेरे विचार में

मृग तृष्णा सी प्रीत बस 

या 

मृग मरीचिका प्रीत बस 

होने से सामीप्य का भास बेहतर होगा. 

समीप्य पर भी मन में संदेह हो रहा है, शायद शुद्ध शब्द सामीप्य होना चाहिए. कृपया मेरा संदेह दूर करने का का करें. 

शेष सभी दोहे अति उत्कृष्ट हैं. बधाइयाँ. 

किन्तु 

नहीं एक भी वायदा, नहीं बंध से युक्त 
प्रीत प्रखर निभती तभी, मन हों जब उन्मुक्त      यह दोहा प्रीत की विलक्षण परिभाषा कर गया. वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 4:57pm

आदरणीया प्राची जी  अत्‍यन्‍त सुन्‍दर दोहे हुए है सभी ने इस पोस्‍ट के अंतिम दोहे की सराहना की है और वो है भी सर्वोत्‍तम सीधे दिल को छू लेने वाला इन सभी दोहो के लिये हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें । सादर

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2016 at 12:38pm

अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद

वाह आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी प्रीत को केंद्रित कर सृजित इन अनुपम दोहों की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2016 at 12:52am

अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद

इस दोहे बीसियों बार पढ़ गया. चमत्कृत हूँ आपकी कलम का जादू देखकर. आपको शत शत नमन है इस दोहे के लिए. ऐसा दोहा हो जाना साहित्यिक जीवन की उपलब्धि है. पुनः सादर नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 10:17pm

आदरणीया प्राची जी , प्रीत पर आपके सारगर्भित दोहों के लिये हारदिक बधाइयाँ ।

प्रीत न कलुषित कर कभी, आरोपित कर चाह
मन इच्छित हर कामना, लीले सलिल प्रवाह

अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद  ---       शाश्वत सत्य कहते इन दोहों के लिये आपको पुनः बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2016 at 6:53pm
बेहतरीन शिल्प में सार्थक दोहासृजनके लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ.प्राची सिंह जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
13 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service