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मोहतरमा शांति पुरोहित साहिबा , रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
// मैं भी आपकी तरह मेम बनकर घर पर बैठेगी //
इस एक पंक्ति में लाखों शांता बाइयों का सपना छुपा है। इतने कम शब्द और बात इतनी बड़ी !
मुद्रण की गलतियों के लिए थोड़ा समय अवश्य निकालिएगा।
और हाँ , अंतिम पंक्ति न भी होती तो भी कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था।
हार्दिक बधाई आदरणीय शांति पुरोहित जी !बेहद सुन्दर और चुटीली प्रस्तुति!
लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है आ० शांति पुरोहित जी किन्तु रचना इससे कहीं बेहतर हो सकती थीI इस रचना में मालकिन ने एक सवाल किया और नौकरानी ने उसका जवाब दे दिया - यही है न? तो इसमें विशेष बात क्या है? बेहतर होता कि नौकरानी की पूरी होती ख्वाहिश को जानकर सुबह 9 से 6 तक नौकरी में खपने वाली मालकिन अपने दिल की बात कहतीI बहरहाल प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारेंI
सुंदर कथानाक , बधाई स्वीकार करें ,आदरणीया शांति पुरोहित जी ,
ग़ज़ब ! दमित इच्छाओं का मुखर हुआ यह क्लिष्ट स्वरूप चकित नहीं करता, आदरणीया शान्तिजी, बल्कि समझा रहा है कि तथाकथित उच्च या सक्षम वर्ग पर हर पल लानत भेजने वाले या उनसे सहम कर जीने वाले अकसर लोग छिछली उपलब्धियों पर भी किस तरीके बेलगाम हो जाते हैं. आपने प्रदत्त शीर्षक को कितनी सहजता से प्रासंगिक आयाम दिये हैं ! हृदयतल से बधाई व शुभकामनाएँ स्वीकार करें, आदरणीया.
सबका एक दिन भाग्य बदलता है | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई
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