आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आदरणीय सौरभ पांडे जी आपकी सीख सर माथे ।आपने समय दिया एवं विशिष्ट सलाह दी जो अनमोल है ,आभार जैसे शब्द छोटे हैं ।सादर नमन ।
धन्यवाद आदरणीय नीता जी ,आपको तस्वीर पसंद आई ।
आदरणीय पवन जी सर, विसंगति को दर्शाती इस रचना हेतु बधाई स्वीकार करें| संवादों को उद्धरण चिन्हों के मध्य लिखने से पढना और भी स्पष्ट हो जाएगा| सादर,
सादर आभार आदरणीय चंद्रेश कुमार जी ।
आज के भयावह हालत को दर्शाती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
आभारी हूँ आदरणीय विनय कुमार जी ,इतनी व्यस्तता के बावजूद भी प्रोत्साहित कर रहे हैं ।
तस्वीर
* मृग मरीचिका *
" हलकी धुंध में लिपटे गाँव मे बिजली के बल्ब जुगनुओं की भाँति टिमटिमा रहे हैं। घरों की चिमनी से निकलता धुआँ पेड़ों के पीछे विलीन हो रहा है।थान पर जानवर सोने की तैयारी में जुगाली कर रहे हैं।रोटी की आस में बच्चे किताब की ओट से माँ को निहार रहे हैं। बाहर बाखली में तम्बाकू की खुशबू से लिपटे मर्द दुनिया जहान की बातों में मग्न हैं।
वाह ! अपनी जादुई हाथों से अद्भुत चित्र उकेर डाला मृणाल तुमने! कितना खूबसूरत गाँव है।दिल चाहता है अभी उड़ कर वहां पहुंच जाऊँ।"
" तुम भी बहुत अच्छा वर्णन कर लेती हो नीलपर्णिका ! अब गाँव को महसूस ही कर सकते हैं । वहां जी नहीं सकते " मृणाल की आवाज़ मानो मन्दिर के गर्भ गृह से आ रही हो।
" क्यों ?" उत्सुकता ने नीलपर्णिका को उत्तेजित कर दिया।
" क्योंकि अब ये सुंदर मंज़र तस्वीरों में सिमटकर धनवान लोगों की कोठियों में सजते हैं ।"
"देखो ! मैं तुम्हें दूसरी तस्वीर दिखाता हूँ।"
" ये क्या ? कैसी तस्वीर बनाई है तुमने ? खण्डहर घर, उजड़े खेत, सूनी पगडण्डी और आसमान में जड़ी दो बूढ़ी आँखें ? कितना नीरस और जीवन विहीन है ये चित्र ? मानो इसकी आत्मा ही मर गई हो। कहाँ गए इसके सुंदर चरित्र और रंग ?"
"वे ...वे तो , मृग मरीचिका के पीछे महानगरों की सड़ाँध मारती झोपड़ पट्टियों में जीने की चाह में मरने चले गए।"
मौलिक एवम् अप्रकाशित
आदरणीया जानकी जी, बहुत बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर
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