आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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इस लघुकथा में आपको सफेद-पोश कहाँ दिख गए कांता जी?
गलत शब्द है यह
“अमन चैन तो ठीक है, मगर समाचार का मज़ा नहीं आया आजI” नमन आपकी लेखनी और सोच की गहराई को आदरणीय योगराज सर। ये पंच लाइन बिन बोले ही सब कुछ कह गयी। तमाशबीन का अर्थ समझा गयी। हार्दिक हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
जितना तब सच था, उतना ही आज भी सच है ये, बिना ऐसी ख़बरों के मजा कहाँ आता है लोगों को| बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बधाई आपको
आदरनीय योगराज जी, कैसी सचाई को लघुकथा में नज़र आई, समय का सच्च था , जो हम लोगों ने देखा व् सुना
मोहतरम जनाब योगराज साहिब, लोग अब फसाद ,झगड़े और हिंसात्मक ख़बरें सुनने के आदि हो गए हैं , इस अमन चैन की ख़बरों में लोगों को मज़ा नहीं आता ,प्रदत्त विषय को सार्थक करती और समाज को आईना दिखाती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
पसंद अपनी अपनी ।
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