आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अन्तिम पंचलाइन ज़बरदस्त है! इस उम्दा लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया कल्पना जी!
आदरणीया कल्पना जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. बहुत बहुत बधाई. सादर
हार्दिक धन्यवाद आपका
आखिरी पंक्ति ने लाजवाब कर दिया, बहुत बढ़िया रचना विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
तारीखें
लालचंद गुप्ता जी - ‘‘आपने जो अट्ठारह हजार का अकाउण्ट पे जो चैक राजेश्वर जी से दिलवाया था वो पाँच तारीख को एन कैश तो हो जाएगा न?’’
सुरेश शर्मा जी - ‘‘शायद हो तो जाना चाहिए। मैं और राजेश्वर जी को चेता दूँगा।’’ गुप्ताजी का माथा ठनका। चैक के एन कैश होने की उन्हें उम्मीद नज़र नहीं आई। शर्माजी के जवाब से ऐसा लगा। गुप्ताजी फिर बोले- ‘‘देखिए शर्मा जी मैंने आपकी क्रेडिट पर माल देकर रजेश्वरी जी को माल दिया था और चैक लिया। वैसे मैं नकद का कामकाज करता हूँ।’’
शर्मा जी - ‘‘आप चिंता न करें। अगर चैक बाउंस हो जाता है तो उन पर मुकदमा दायर कर देखो।’’ गुप्ताजी तत्काल बोल पड़े ’’न भई न! मैं कोर्ट कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। कोर्ट में न्याय नहीं तारीखें मिलती है तारीखें!! मुझे विरासत में तारीखें नहीं चाहिए समझे।’’ अब शर्माजी चिंताकुल हो गए।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सबसे पहले तो आयोजन में शिरकत हेतु अबिनंदन स्वीकार करें मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहिबI लघुकथा अच्छी हुई है, मगर कथ्य और शिल्प की कसावट से कहीं बेहतर हो सकती थीI बहरहाल, इस सद्प्रयास हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI
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