आदरणीय साथिओ,
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//स्कूल साँस रोके ऐसे पिता की तरह देख रहा था जिसकी गोद में बच्चा अठखेलियाँ कर रहा हो और हिलने-डुलने से कहीं बाधा न पड़ जाए| तमाम निराशाओं के बीच ढहता हुआ स्कूल और सूखता हुआ पलाश एक पल को जी गए|//वाह वाह ..क्या बात है ..प्रतीकों में बहुत ही सुन्दर कथा कही है आपने ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीया सीमा मिश्रा जी
वाह वाह वाह !! ढहते हुए स्कूल भवन और सूखते जा रहे पलाश के पेड़ का दर्द बहुत ही सुन्दरता से उभर कर सामने आया है आ० सीमा मिश्रा जीI प्रदत्त विषय पर बहुत ही उत्कृष्ट लघुकथा रची है, पढ़कर मन को संतोष हुआI हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
आदरणीया सीमा जी, आपने तो मुझे अपने स्कूल की याद दिला दी. आपकी लघुकथा से गुजरते हुए प्रत्येक पाठक क्षणिक ही सही लेकिन अपनी स्मृति में खो गया होगा. वाकई आप अपने जीवन अनुभवों से बढ़िया कथानक निकाल कर लाती हैं. कथ्य और शिल्प की दृष्टि से एक सधी हुई लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई. सादर
वाह, बहुत बढ़िया रचना विषय पर, पूरी तरह न्याय करती हुई| बस एक शीर्षक की कमी लग रही है, बहुत बहुत बधाई आपको
आ० बहुत बढ़िया हृदयस्पर्शी
मुह्तरमा सीमा साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा के
लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---
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