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घनी बस्ती में सड़कें तंग,दिल होते बड़े बेशक,
इन्हीं ने देश की तहज़ीब का दीदा करायाहै।
बेहतरीन शे'र ,ख़ूबसूरत ग़ज़ल, बधाई तिवारी जी।
अदब, तहजीब यकसाँ है, अयाँ है, पर सितम देखो
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है
कमाल धमाल लाजवाब बेमिसाल
वाह गिरह के शेर को क्या ऊँचाई दे दी है
वाह वाह दिल खुश हो गया
भाई अच्छी परिपक्व ग़ज़ल है। बधाई।
//समंदर ने बड़प्पन का गुमां बेजा कराया है
नदी का लेके सब जल खुद उसे सूखा कराया है//
//सुन्दर मतला ! सिर्फ एक बात खटक रही है भाई जी, नदी तो समर्पण की प्रतीक होती है जो खुद-ब-खुद सागर मिलन को दौड़ी चली आती है - उसमें बड़प्पन का गुमान कहा से आ गया ? हाँ, अगर नदी प्रतीक्षा कर रहे सागर को छोड़ कहीं ओर का रुख कर लेती तब सागर के बड़प्पन के गुमान को धत्ता बताने की बात हो सकती थी ! थोड़ा इस तरफ ध्यान दीजिए //
अदब, तहजीब यकसाँ है, अयाँ है, पर सितम देखो
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है
//भारतीय उपमहाद्वीप के दुखांत को बहुत सुन्दर ढंग से शब्द दिए हैं - वाह ! //
करोगे क्या जुटाकर तुम जखीरे सा ये सरमाया
इसीने तो घरों में बेवजह झगडा कराया है
//बहुत खूब, मगर ये बात आजकल समझता कौन है ?//
घनी बस्ती में सड़कें तंग, दिल होते बड़े, बेशक
इन्ही ने देश की तहजीब का दीदा कराया है
//कमाल का शे'र है यह भी शेष भाई जी - वाह !//
कभी हम जीभ अपनी काटते हैं अंध श्रद्धा में
कभी नन्हे फरिश्तों को डपट रोजा कराया हैअदब, तहजीब यकसाँ है, अयाँ है, पर सितम देखो
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है
करोगे क्या जुटाकर तुम जखीरे सा ये सरमाया
इसीने तो घरों में बेवजह झगडा कराया है
वाह तिवारी भैया वाह...क्या गजब का लिखा है आपने....बहुत खूब...लिखते रहें ऐसेही...
करोगे क्या जुटाकर तुम जखीरे सा ये सरमाया
इसीने तो घरों में बेवजह झगडा कराया है
वाह वाह शेष धर सर , बहुत ही सटीक बयानी ,
घनी बस्ती में सड़कें तंग, दिल होते बड़े, बेशक
इन्ही ने देश की तहजीब का दीदा कराया है
वाह वाह , बुलंद ख्यालात है सर , बहुत ही खुबसूरत शे'र |
कभी हम जीभ अपनी काटते हैं अंध श्रद्धा में
कभी नन्हे फरिश्तों को डपट रोजा कराया है
वाह वाह , बहुत खूब , धार्मिक उन्माद पर करारा प्रहार और इस ग़ज़ल की जान भी , बेहद खुबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति पर दाद कुबूल कीजिये सर |
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