आदरणीय साथिओ,
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एक अलग अंदाज़ में लिखी गई लघुकथा. यह अंत तक रोचकता बनाए रखने में कामयाब रही है. बधाई आदरणीय सुनील वर्मा जी.
अच्छा विषय चुना आपने , इस हेतु बधाई ! शीर्षक चयन पर थोड़ी शंका है | सादर
आदरणीय सुनील भैया , कथा अच्छी हुई है , पर हमेशा की तरह नहीं | सादर |
बहुत अच्छी लघुकथा है भाई सुनील वर्मा जी, बधाई प्रेषित हैI
प्रस्तुति का अंदाज बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया आदरणीय सुनील जी , कथ्य जाना पहचाना है पर प्रस्तुतिकरण शानदार है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आदरणीय सुनील जी, बढ़िया संदेशप्रद लघुकथा है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. मुझे ऐसा लगता है कि यदि उस बुज़ुर्ग के चारों बेटे अपनी शादी के बाद उसे छोड़ जाएं और वह घर में नितांत अकेला रह जाए तो कथा और भी सशक्त हो जाएगी. सादर.
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