आदरणीय साथिओ,
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अच्छी शिक्षाप्रद लघु कथा हुई आद० डॉ० गोपाल भाई जी हार्दिक बधाई
सुख बनाम सूनापन(लघुकथा)
रिटायरमेंट के बाद आज मैं अपने गाँव को जाने के लिए तैयार हो कार में बैठ गया। चाली वर्ष के बाद आज फ्री हो कर पहली बार गाँव जाने का प्रोग्राम बनाया, यहाँ पर भी तो अकेला ही हूँ, जब की श्रीमती इंग्लेंड बेटे के पास गई है ।
वैसे जब भी परिवार के साथ पहले कभी गाँव जाता तो वापस आने की जल्दी होती और कभी जाते भी तो किसी जरूरी फंक्शन पर ही । मगर आज तो मन में कौन सी ख़ुशी थी कि मुझे पता ही न चला कब पांच घंटे के सफर पास हो गया और मैं गाँव में था ।गाँव में आ कर मैनें कार को घर की तरफ़ मोड़ लिया ।घर के पास आ कर मैने कार का हार्न बजाया, थोड़ी देर कि बाद सतीश घर से बाहर आया, आते ही सतीश ने दुआ सलाम की और मैने भी उसे प्यार दिया ।
थोड़ी देर पास बैठने के बाद सतीश ने कहा, चाचा जी, "आप यहाँ आराम करें, मैं अभी ज़रा काम कर के आया" ।
जब भाई और भाभी के बारे पूछा तो उसने ने कहा, "वो तो हरिद्वार गए हैं" ।
फिर सतीश ने कहा, "किसी चीज़ कीजरूरत हो तो सीता को बुला लेना, अभी चाय बना रही है" ।
देर रात मैं इंतजार करता रहा मगर रात को मैं अकेला ही कमरें में लेटा करवटें लेता रहा, पहले तो नींद नहीं आई मगर बाद में पता ही न चला कब नींद आ गई ।
सुबह उठ कर जब मैं चौपाल की तरफ़ जा रहा था तो राह में कई लोग बच्चे बजुर्ग व् औरतें मिली ।
मगर किसी को मेरी और न मुझे उनकी पहचान थी, और जो बड़ी उम्र के लोग पहचानते भी वो भी दुआ सलाम करके आगे बढ़ गए । चौपाल में भी अब कोई बैठा दिखाई नहीं दिया, कुछ औरतें नल से पानी भर रही थी, पता नहीं मेरे के मन में क्या आया वहाँ से जल्दी ही मैं घर की तरफ मुड़ा।
सतीश भी बिना मिले ही सुबह काम पर जा चूका था, तब मुझे लगा कि सूनापन तो वैसा ही जैसा शहर में, फिर यहाँ क्यूँ ।और मैने समान उठाया और बाहर कार के पास आ गया एक पल मुझे लगा कि घर वालों की भीड़ मुझे बस चढाने साथ आ रही है ।
मगर थोड़ी देर बाद मेरा हाथ कार के दरवाज़े पर था, पिछली सीट पर समान रख मैने कार का अगला दरवाज़ा खोला और बैठ कर कार स्टार्ट की तब लगा कि ये कैसा सुख मिला जिसने अपनापन भी खो लिया, और कार स्टार्ट कर, मैं दुसरे सूनेपन की तरफ चल पड़ा ।
शीर्षक को चित्रित करती हुयी अच्छी कथा ।
बढ़िया रचना विषय पर, हर जगह सूनापन ही रह जाता है कभी कभी| बधाई आपको
बहुत अच्छी लघुकथा है आ० डॉ मोहन बेगोवाल जी. जिस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. (नियमानुसार मौलिक और अप्रकाशित लिखना भूल गए आप इस बार)
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।वरिष्ठ नागरिकों के अकेलेपन की व्यथा का सार्थक मूल्यांकन करती बेहतरीन एवम लाज़वाब लघुकथा।
बहुत बढ़ीया कथानक चुना है आपने आदरणीय बेगोवाल साहिब । गॉंव भी अब गॉंव नहीं रहे । सशक्त कथानक का शीर्षक चयन कुछ कमजोर लग रहा है । हार्दिक शुभकामनाएं
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