आदरणीय साथिओ,
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया आद० नीता जी
कर्तव्य ‘/
गुरुवर, ‘सुख’ क्या है ?’ शिष्य ने पूंछा ‘यह एक चिरंतन प्रश्न है ?’ – गुरु ने मुस्कराकर कहा –‘सुख की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है, किसी व्यक्ति के लिए जो सुख का उपादान है वही दूसरे के लिए दुःख का कारण हो सकता है. सुख मनुष्य के वैचारिक स्तर पर भी निर्भर करता है.’ गुरु अभी शिष्य को समझा ही रहे थे कि संदेशवाहक ने आकर किसी अतिथि के आगमन की सूचना दी. गुरु ने शिष्य से कहा –‘वत्स! तुम्हारे पिता तुमसे मिलने आये है. थोड़ी ही देर में वह यहाँ उपस्थित होंगे’. शिष्य का मुख प्रसन्नता से खिल उठा . ‘पिता के आने के समाचार से तुम्हे हर्ष हुआ. यह भी एक सुख है किन्तु यह तात्कालिक और क्षणिक है.---‘ गुरु एक पल के लिए रुके फिर विचारपूर्वक उन्होंने शिष्य को आदेश दिया – ‘वत्स, तुम अपने पिता को तब तक प्रणाम मत करना जब तक मैं तुमसे न कहूं.’ इस आदेश पर शिष्य आश्चर्य में पड़ गया –यह तो निहायत बदतमीजी होगी .पर गुरु से कुछ कहने का साहस उसमे नही था .उधर गुरु ने बात जारी रखते हुए कहा –‘सच्चाई तो यह है, वत्स कि मनुष्य जीवन भर सुख रूपी मरीचिका के पीछे भागता फिरता है, जबकि सुख स्वयम उसके अधीन होता है ‘ इसी क्षण शिष्य के पिता का आगमन हुआ. उन्होंने पहले गुरु के चरण स्पर्श किये फिर अपने पुत्र पर स्नेह भरी दृष्टि डाली . पर यह क्या पुत्र की निगाहें झुकी हुयी थी . उसने पिता का चरण स्पर्श करना तो दूर अभिवादन तक नहीं किया , इतना अविनय, इतना अभिमान. गुरु के इस विख्यात आश्रम में यह कैसी शिक्षा ?. पिता का मन क्षोभ से भर गया . शिष्य की मनोदशा भी ऐसी ही थी. उसका मन उसे रह रहकर धिक्कार रहा था. ‘उठो वत्स. पिता को प्रणाम करो ‘ –अचानक गुरु की आवाज से वह सचेत हुआ . पुत्र ने दौड़कर अपने पिता को प्रणाम किया और उनसे लिपट गया . पिता ने भी पुत्र को स्नेह से गले लगाया. दोनों की आँखों से आंसुओं की अविरल धारा निकल पडी . ‘वत्स, यही सच्चा सुख है’ – गुरु की गंभीर ओज भरी वाणी हवा में गूँज उठी –‘कर्तव्य-पालन से बढ़कर न कोई धर्म है और न सुख . जब हम अपने कर्तव्य से मुख मोड़ते है तब हमारा मन हमें सौ-सौ बार धिक्कारता है. यदि हम उस धिक्कार को अस्वीकार करते है तो हम स्वतः अपने लिए दुःख को आमंत्रित करते है ‘- इतना कहकर गुरु ने अपनी आँखे बंद कर लीं .
(मौलिक / अप्रकाशित)
बहुत अच्छी लघु कथा ! हार्दिक बधाई
आदरणीय गोपाल नारायण सर ।
बहुत बढ़िया सकारात्मक दर्शन से भरपूर रचना विषय पर, सुख का एक प्रकार यह भी है| बहुत बहुत बधाई आपको
इस शिक्षाप्रद बालोपयोगी लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी.
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी। बेहतरीन शिक्षाप्रद एवम लाज़वाब लघुकथा।
बहुत ही सुंदर सन्देश दे रही आपकी यह कथा आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी | हार्दिक बधाई सर
'सुख' भरपूर इस शिक्षाप्रद लघुकथा हेतु आचार्य श्रीवास्तव जी को हार्दिक शुभकामनाएं । :-)
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