For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-87

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 87वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी  सकूँ "

2122    1122   1122   112/22

फाइलातुन  फइलातुन  फइलातुन  फइलुन/फेलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- भी न सकूँ
काफिया :- आ (मिटा, जला, उड़ा, हटा, दबा आदि)
विशेष: 

१. पहला रुक्न फाइलातुनको  फइलातुन अर्थात २१२२  को ११२२भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 सितम्बर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13270

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीया कल्पना जी तहे दिल शुक्रगुजार हूँ रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिये सादर

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० डॉ०  आशुतोष जी शेर दर शेर बधाई लीजिये 

रोज मर मर के मैं जीता रहा हूँ दुनिया में
लाश जिन्दा हूँ जमाने को बता भी न सकूँ

तेज रफ़्तार हवाओं ने खड़ी की मुश्किल
तेल बाती है मगर दीप जला भी न सकूँ---वाह्ह्ह्हह 

अच्छे शेर कहे हैं आ० आशुतोष जी। मेरी बधाई स्वीकार करें।

बढ़िया ग़ज़ल कही है आ. आशुतोष जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. दूसरे शेर के मिसरों का रब्त मुझे समझ में नहीं आया. 

क्या आठवें शेर को इस तरह किया जा सकता है?

जिस घड़ी यार जुदा मुझ से हुआ था मेरा

याद कर भी न सकूँ उसको भुला भी न सकूँ

देख लीजिएगा. सादर.

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी ..अच्छी ग़ज़ल हुई है ....हुस्ने मतला के दोनों मिसरों में मैं रब्त कायम नहीं कर पा रहा हूँ...हार्दिक बधाई|

अपने सोए हुए अरमां को, जगा भी न सकूँ।
तेरी आंखों से ये आंखे, तो मिला भी न सकूँ।।

गीत ऐसा कहे कोई, जिसे गा भी न सकूँ ।
जाम शब्दों को ये थोड़ा सा पिला भी न सकूँ।।

मैं तो आशिक ही तेरे दर का, तेरे आंगन का।
कर दे मजनूं मुझे खुद का, दे पता भी न सकूँ।।

ऐसे बिछड़ो मेरी आंखों से कभी मिल ना सको ।
और मैं अश्क जमाने से, छुपा भी न सकूँ ।।

कत्ल में मेरे ये हमदम ही मेरा शामिल था ।
राज दिल में है जमाने को बता भी न सकूँ ।।

अपनी तकदीर ही ऐसी है कि मंजिल न मिली ।
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ।।

अपनी गजलों मैं "अमित" फिर से यही कहता है ।
भूलना तो है मगर तुझको भुला भी न सकूँ।।

"मौलिक व अप्रकाशित"

आद0 अमित जी सादर अभिवादन, गजल पर बेहतरीन प्रयास के लिए दाद और मुबारकबाद क़बूलें, सादर।

आ. Surendra Nath bhai ji ghazal Pasand karne ke liye bahut bahut dhanyavad

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. अमित जी,
कई  मिसरों को और कसा जा सकता है ...भर्ती के शब्द बदले जा सकते थे ..
प्रस्तुति के लिए आभार 
सादर 

आ. Nilesh bhai ji गजल पसंद करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आप के सुझाव को अमल में लाने का प्रयास करुंगा। आभार

आदरणीय अमित जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

आदरणीय मोहम्मद आरिफ भाई गजल को सराहने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
11 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
18 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service