आदरणीय साथिओ,
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अपने माँ-बाप को देख्कार ही सही, उसका हृदय पसीज गया और बड़ा हादसा ताल गया | अच्छी लघुकथा के लिए बधाई श्री तस्दीक अहमद साहब
आ. तस्दिक जी अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें
हाल ही मैं एक वाकया एसा ही हुआ संदेशपरक लघु कथा बहुत बहुत बधाई मोहतरम तस्दीक जी
अच्छी लघुकथा है आ. तस्दीक अहमद खान जी, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
ऐसे सुबह के भूले और भी नौजवान घर लौटने लगें तो कितना सुखद हो , आशा का संचार करती सकारात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक जी
दिए गए विषय ‘सुबह का भूला ‘पर
‘संस्कार ‘
मिश्रा जी का बेटा उनसे बोला ,”पिताजी आप लोग यहाँ आ गए हमें बताया भी नहीं , वो तो गाँव के शर्मा चाचा के डॉक्टर बेटे से पता चला । “
मिश्रा जी बोले “बेटा हमने तो तुम्हें कितनी बार फ़ोन पर बताया तुम्हारी माँ के घुटनो में बहुत तकलीफ़ है , तुमने बाद में फ़ोन ही उठाना बंद कर दिया । “
“वो मैं बहुत व्यस्त हो गया था ।”बेटा बोला ।
“वो तो शर्मा जी का बेटा गाँव आया था ,तो तुम्हारी माँ की तकलीफ़ देख यहाँ ले आया ,अच्छे से ऑपरेशन भी हो गया । “मिश्रा जी बोले।
“और ये फ़्लैट “बहू ने पूछा । बेटे ने उसे ग़ुस्से से घूरा ।
“ये वन बेडरूम का फ़्लैट तो हमने ख़रीद लिया बहू “मिश्रा जी मुस्कुरा के बोले ।
“इतने पैसे कहाँ से आए “, बहू ने फिर से पूछा ।
“तुम चुप नहीं रह सकती “बेटा उसे डपट कर बोला।
“अरे नहीं पूछने दो बेटा , बहू हमारी जो ज़मीन थी ,वो बेच दी ,सड़क के पास होने से अच्छी रक़म मिल गयी ।वहाँ के घर के भी अच्छे दाम मिल गए , बुढ़ापे में हारी बीमारी चलती रहती है ,तो अब यही रहेंगे । “मिश्रा जी बोले । तभी नौकरानी नाश्ता रख गयी ।
“बहू ये गाँव की नौकरानी साथ आ गयी, हम लोगों का सब काम कर देती है । और मुझ मास्टर की पेंशन व घर ख़रीदने के बाद बचे रुपए की एफ डी के व्याज से आराम से घर चल जाता है ।”मिश्रा जी ने बताया ।
“पिताजी आप हमें माफ़ कर दे , आप ही तो कहते है ,सुबह का भूला शाम को वापस आए तो उसे भूला नहीं कहते ।”बेटा बोला ।
“बेटा तुमने तो लौटने में रात कर ली , पर तुम्हारी भी ग़लती नहीं है ,शायद हमारे ही संस्कार में कोई कमी रह गयी होगी । “मिश्रा जी बोले ।
बेटा बहू दोनो की नज़रें झुक गयी।
मौलिक व अप्रकाशित
बहुत सुंदर लघुकथा कही है प्रिय बरखा शुक्ला जी, बधाई स्वीकारें. थोडा कथ्य और शिल्प की दृष्टि से इसे और कसेंगी तो रचना और बी चमक उठेगी.
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