आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय पर बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने आ. विजय शंकर जी. इस हेतु मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. बाकी गुणीजनों की बातों से मैं भी सहमत हूँ. सादर.
सहभागिता हेतु बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० विजय शंकर जी बढिया कटाक्ष किया है प्रतीकों के माध्यम से किन्तु मुझे प्रदत्त विषय नजर नहीं आया लघु कथा में .
घोड़ों को केंद्र में रखकर आपने जो कह्ना चाहा है पूरी तरह संप्रेषित नहीं हो पाया . वैसे कथा की ये शैली रोचक है हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी
सुबह का भूला
उसका मन कहीं लग नहीं रहा था. सुबह से ही अवसाद में डूबा था. आफिस जाने से पूर्व पत्नी ने अपनी योजना समझायी और देर से घर आने की हिदायत दी. इसलिये आफिस से निकलकर वह अपने एक मित्र के घर चला गया .
‘अरे, पसीना-पसीना हो रहे हो’ मित्र ने देखते ही प्रश्न किया , ‘सब ठीक तो है ?’
‘हाँ ठीक है, पर मन बड़ा अशांत है’
‘कमाल है. तुम्हारे जैसा खुश-मिजाज इंसान और परेशान ?
‘कुछ उलझनें ऐसी होती हैं, जिन्हें साझा कर पाना मुश्किल होता है, यार’ उसने थके स्वर में कहा. ‘ खैर छोड़ो, अपनी, बताओ अंकल कैसे हैं?’
‘हां चल रहे हैं, दिल की बीमारी है, इलाज करा रहा हूँ ‘-मित्र ने गंभीर होकर कहा ‘सच तो ये है कि जब तक वे हैं; तभी तक मैं जवान और निश्चिन्त हूँ. बड़ों का साया बहुत बड़ा होता है भाई ‘-मित्र ने दार्शनिक अंदाज में कहा. फिर जैसे उसे कुछ याद आ गया हो. वह उत्साहित होकर बोला –‘यार तुम तो बैंक में हो , मुझे कुछ लोन दिला दो ‘
‘क्यों, इलाज मंहगा पड़ रहा है ?
‘हाँ यार, पी. एफ़. से तो पहले ही लोन ले चुका हूँ . पर बाई-पास सर्जरी ! तुम तो जानते हो, पर यार, जब तक मेरे शरीर में खून की एक भी बूँद बाकी है. मैं पिटा जी को ऐसे ही मरने नही दूँगा . चाहे घर-बार भी क्यों न बेचना पड़े. भला माँ-बाप से बड़ा भी कोई होता है ? ’ मित्र के इतना कहते ही वह फफक कर रो पड़ा . मित्र ने हैरान होकर कहा –‘अरे, अब तुम्हे क्या हुआ ?’
‘कुछ नही यार, मैं बड़ा पापी हूँ.’ उसने पगलाये स्वर में कहा और घड़ी देखते हुये उतावली से उठ खड़ा हुआ, ‘चलता हूँ , तुम्हारे लोन पर फिर बात करूँगा ‘
वह ऐसे भागा मानो मौत उसके पीछे पड़ी हो. घर पहुँचते ही वह आंधी-तूफान की तरह अंदर गया और पत्नी को देखते ही डरे स्वर में बोला –‘चुड़ैल, क्या तूने पापा को वह पुडिया खिला दी ?’
पत्नी उसके तेवर देखकर चकरायी फिर सहमकर बोली -‘हाँ, अभी-अभी तो ’
उसकी आँखों में खून उतर आया. उसने पत्नी की लात-घूंसों से खूब मलामत की और दहाड़ते हुआ बोला –‘साली, मन में जहर भरने वाली, तुझे तो बाद में देखूंगा,’
वह तुरंत पिता के कमरे में गया. उनके अस्त-व्यस्त शरीर को कंधे पर लादकर किसी प्रकार सड़क तक आया; फिर एक टेम्पो पर लिटाते हुये वहशत से बोला –‘ ड्राईवर, हॉस्पिटल, फ़ौरन ‘
(मौलिक /अप्रकाशित )
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. बधाई स्वीकारें. कथा में स्वाभाविकता और कसावट की कमी है, उस तरफ अवश्य ध्यान दें.
इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी|
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।बेहतरीन लघुकथा।
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