आदरणीय साथिओ,
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कथा के भाव बहुत अच्छे हैं . 'विश्व गुरु भारत की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना'. थोड़े से शैल्पिक बदलाव से सशक्त लघुकथा बनेगी हार्दिक बधाई इस रचना पर आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडिवाला जी
आ. भाई लडीवाला जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
आदरणीय एक बेहतरीन रचना के लिए कोटि कोटि बधाई कुबूल कीजिये
बँटवारा
" कहना तो नहीं चाहिए मगर कहना भी ज़रूरी है । दिल पर पत्थर रखकर कहने जा रही हूँ मेरे बच्चों ।"
" ऐसी कौन-सी आफत की बारिश हम पर होने वाली है माँ ।"
" बात ही कुछ ऐसी है ।"
" हमें यह घोंसला छोड़ना होगा ।"
" क्या कहा !" बच्चों ने एक स्वर में कहा ।
" हाँ , आज सुबह ही घर के मालिक के मुख से सुना है कि वह इस नीम को धराशायी करेगा । वजह बँटवारा । नीम को आँगन से काटकर बीचों-बीच दीवार खड़ी करके अपने दोनों बेटों में हिस्सा करना चाहता है ताकि दोनों में रोज़-रोज़ का झगड़ा ख़त्म हो जाए । नीम आड़े आ रहा है इसलिए नीम को काटकर दीवार खड़ी करना चाहता है ।"
" माँ ये बँटवारा क्या होता है ?" दूसरे बच्चे ने बड़ी मासूमियत से पूछा ।
" मेरे प्यारे इंसानों में बँटवारे की अजब बीमारी फैली है । जिसकी चपेट में जंगल , ज़मीन ,पेड़-पौधे , घर-आँगन सभी आ गए हैं । मैंने दूसरा नीड़ तलाश लिया है ।" और मैना अपने सभी बच्चों को लेकर फुर्र हो गई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी सुंदर व सुखद अंत वाली कथा के लिए हार्दिक बधाई
बहुत-बहुत। आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी । लेखन सार्थक हो गया ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
वाह-------यह बंटवारा क्या होता है ? लाख टके का सवाल. बधाई
कथा के मर्म को समझने और अपनी बेशक़ीमती प्रतिक्रिया देने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय गोपाल नारायण जी ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
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