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आदरणीय आरिफ साहब आपकी रचना बहुत अच्छी है यथार्थ भावों को प्रदर्षित करती आपकी रचना अनमोल है बहुत बहुत बधाई
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय छोटे लाल जी ।
प्रदत्त विषय पर धारदार और विचारोत्तोजक कटाक्षिकाएँ। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
रचना के अनुमोदन और उनके उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी ।
उत्तम क्षणिकाएं , आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी। खेत और खलिहान का पोषक किसान अब अस्तित्वहीन होता जा रहा है , किसान की चिंता को प्रकाशित करती सुन्दर रचना।
रचना के अनुमोदन, निरपेक्ष टिप्पणी और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीय टी.आर.सुकुल जी ।
प्रभावशाली कटाक्षिकाएँ आदरणीय,बधाई आपको।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय मनन कुमार जी ।
गजल
*****
फस्ल थी कल लहलहाती खेत औ' खलिहान में
चल रही है आज भट्टी खेत औ' खलिहान में।१।
आज मजदूरी है करता हाट में वो शहर की
कट रही थी खूब जिसकी खेत औ' खलिहान में।२।
योजनाएँ अब विकासों की विनाशों का सबब
क्यों इमारत रोज उठती खेत औ' खलिहान में।३।
भाव ऊँचे कर के देता रोज ही गोदाम तो
बोलियाँ लगती हैं सस्ती खेत औ' खलिहान में।४।
लूट लेता हर महाजन ब्याज कहकर फस्ल तो
बोरियाँ बाकी हैं खाली खेत औ' खलिहान में।५।
बाढ़ सूखा छीन लेता है किसानो की खुशी
बस नियामत हो खुदा की खेत औ' खलिहान में।६।
मौलिक अप्रकाशित
बहुत भावभीनी ग़ज़ल।
प्रासांगिक और विचारों को उद्वेलित करती रचना।
आ. भाई अजय जी, गजल को मान देने के लिए आभार ।
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । शेर3 में शतुरगुरबा का दोष आ रहा है ,उठती -उठतीं । शेर6 सानी में नियामत की जगह इनायत सही रहेगा ।शेर3 सानी यूँ करसकते हैं "हैं इमारत ऊंची ऊंची खेत औ खलिहान में ।
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