आदरणीय साथिओ,
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वाह बहुत बेहतरिन सार्थक रचना की आपने बहुत बहुत बधाई हो आपको। सादर नमन जी।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय सुनील जी ,बधाई इस रचना के लिए ,सादर
काश हर अभिभावक के पास ऐसा सब्र और समझ हो .एक सम्वेदनशील विषय पर कुशलता से कलम चलाई है आपने. हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी
प्रदत्त विषय को सार्थक करती इस सरल, सहज और सकारात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सुनील वर्मा जी. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी।बेहतरीन लघुकथा।
"युद्ध कर" (लघुकथा) :
उसने रसोई और बेडरूम से हासिल दोनों चिट्ठियों के टुकड़े-टुकड़े किये और बैठ गया जवाबी चिट्ठी लिखने के लिए। दोनों बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। वह बेडरूम में लेटी हुई थी। थका हुआ तो वह भी था, लेकिन दूसरी वाली ताज़ा चिट्ठी में तो हद पार कर उसकी बीवी ने अपनी सासू-अम्मी और देवर-देवरानी के बारे में ऊट-पटांग इल़्ज़ाम लगा कर उन्हें और अपने शौहर को अपनी ख़ुदक़ुशी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था, जो उसने अभी तक की ही नहीं थी! आधा ख़त लिख कर वह उसे पढ़ने लगा :
"मेरी लैला 'नाज़ो',
अच्छा है कि तुम अपनी भड़ास यूं निकाल देती हो। तुम मुझसे परेशान हो, मेरी अम्मी और अपने देवर- देवरानी को क्यूं लपेट रही हो? ऐसी बेवक़ूफियां क्यों? तुम्हारा मुझसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा होना किस काम का? ठीक है, हमारे ख़्यालात और तौर-तरीक़े बेमेल हैं। शादी के पहले हम यह महसूस नहीं कर पाये। मरे जा रहे थे एक दूसरे के लिए! तुमने यह भी नहीं सोचा कि मैं कम पढ़ा-लिखा अॉटो चलाने वाला ग़रीब हूं! मेरा क्या कसूर। तुम्हारी तीनों छोटी बहनों की ख़ातिर तुम्हारे अब्बू ने तुम्हारी शादी मुझसे कर दी! हम समझे कि उन्हें हमारा प्यार कबूल है! हमने सोचा कि तुम मुझे इज़्ज़त दोगी, प्यार करती रहोगी। क्या पता था कि नौकरी करते हुए रईस सहेलियों और टीवी धारावाहिकों के असर से तुम यूं मुझ पर हावी होने लगोगी। तुमने मुझे कई बार तलाक़ के लिए उकसाया, बहस के हालात पैदा किए। लेकिन मैं चुप ही रहा। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि हमारे बीच तलाक़ जैसे हालात बनने लगे हैं। मुझे मेरे प्यार पर भरोसा बना रहा। ..... लेकिन मैं तलाक़ नहीं दूंगा, यह तुम अच्छी तरह समझ लो! बच्चे बड़े हो रहे हैं!"
इतना ख़त पढ़ कर उसने बेडरूम पर नज़रें दौड़ाईं। खुर्राटों के सुपरिचित सुर सुनाई दे रहे थे। रोज़ की तरह थक गई होगी। यह सोच कर अपनी थकान भूल उसने देखा कि बीवी के बगल में दोनों बच्चे सो चुके थे। वह ख़त आगे लिखने लगा :
"मैं तुम्हें तलाक़ क्यों दूं। क्या कमी है तुम में? मेरी पसंद की हो! लड़ाई-झगड़े और बहस तो सब में होती है, रईसों में भी! कई बेमेल रिश्ते हो जाते हैं मुहब्बत या मज़बूरी के नाम पर! तुमने कितनी बार मेरी बेइज़्ज़ती कितने लोगों के सामने की! मैंने भी तुम्हारी की! तुमने हमारे मायके वालों को बुरा-भला कहा, तो मैंने तुम्हारे! बात बराबर! फिर तलाक़ या ख़ुदक़ुशी जैसे इरादे क्यों? मुझ में और तुम में सिर्फ यही फ़र्क है नाज़ो कि मैं अपनी औक़ात में रहकर ज़मीं पर रहता हूं! दिन-रात मेहनत कर के पैसे कमाता हूं ! लेकिन मुझसे ज़्यादा पढ़े-लिखे होने के सबब से और सरकारी नौकरी करने की वज़ह से कम मेहनत में ज़्यादा पैसे कमा कर, ग़लत सहेलियों के साथ तुम हवा में उड़ने लगी हो, अपनी व मेरी औक़ात से बाहर जा रही हो! ख़ुदा गवाह है कि मैंने न सिर्फ़ तुम्हें अपने बजट में ख़ुश रखने की कोशिश की है, बल्कि वक्त-व-वक़्त तुम्हें समझाता रहा हूं कि बच्चों पर ध्यान दो, बच्चे अब बड़े हो रहे हैं! तुम मेरी ज़रूरतें पूरी कर सकती हो, लेकिन करती नहीं हो! मैं तुम्हारी ज़रूरतें पूरी कर सकता हूं, लेकिन तुम्हें पता नहीं कौन सी हवा लग गई है? ... और ये इस तरह की चिट्ठियां रसोई में और बिस्तर के नीचे छिपाना कहां से सीखा तुमने? सहेलियों से या टीवी चैनलों के धारावाहिकों और फ़िल्मों से? मुंहफट बहस करने की तरह? तुम्हें मालूम है कि मैं और मेरी अम्मीजान चुपचाप यह सब बर्दाश्त कर रहे हैं, क्योंकि तुम हमारी सहारा भी हो! लव-मैरिज है हमारी, कोई मज़ाक नहीं! तुमने ख़त में अपने जमा पैसे सिर्फ बच्चों के नाम करने की बात लिखी? मैं इतना बुरा हूं, मुझ पर भरोसा इतना कम? कब से? मैंने तो कहीं कोई भी कमी नहीं छोड़ी! तुम भी मेरा पूरा ख़्याल रखती ही हो!न मुझमें कोई ऐब है, न ही तुम में!"
इसके बाद उसने ख़त के अंत में लिखा - " मुझे पता है कि कुछ दिनों में फिर सब ठीक हो जाएगा। अधिकतर लोगों की ऐसी ही ज़िन्दगी कटा करती है!"
आख़िर में अपने दस्तख़त कर उसने ख़त बिस्तर के नीचे दबा दिया। फिर पलंग पर लेट कर अपने ही हाथों अपना सिर दबाता हुआ अपने जिस्म की मालिश सी करके वह भी औंधा सो गया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
रचना पर त्वरित पहली बेबाक टिप्पणी और सलाह के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सुनील वर्मा जी। विस्तार हालात और आसपास की हाव-भाव भाव-भंगिमाओं के चित्रण के कारण हुआ, जो मुझे ज़रूरी लगा। विषयांतर लगने का कारण भी बताइयेगा। इस लेखन शैली की तारीफ़ के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद। इससे परहेज़ अभी इस लिए करता हूं ताकि लघु कहानी या कहानी लेखन की तरफ क़दम न बढ़ने पायें, वरना इस तरह मैं बेहतर लघु कहानियां कह सकता हूं। आपकी राय में क्या लघुकथा का इस दौर में लघु कथा या लघु कहानी में विलय स्वीकार कर लिया गया है? किसी टिप्पणी में कहीं किसी वरिष्ठ ने ऐसा लिखा था।
भाई उस्मानी जी, मेरे विचार में यदि इस लघुकथा को पूरी तरह पत्र-शैली अथवा डायरी शैली में लिखने का प्रयास करें. उससे रचना एकदम विलक्ष्ण हो सकती है. वैसे "अनावश्यक विस्तार" से भी रचना को मुक्त करने का प्रयास करें ताकि रचना चुस्त-दुरुस्त हो सके. बहरहाल, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदाब। रचना पर समय देकर अपनी राय और सुझाव देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मंच संचालक महोदय जी। दरअसल मैं इसे ऐसी पत्रात्मक शैली की लघुकथा मान रहा था जिसमें आस पास के वातवरण/ हाव-भाव-गतिविधियां भी शाब्दिक करने का प्रयास किया गया है, जो अनावश्यक विवरण बन गया है।
जानना चाहता हूं कि क्या यह पत्रात्मक लघुकथा शैली नहीं है? पत्रोत्तर के अतिरिक्त का
विवरण हटाने पर हाव-भाव- गतिविधियों को कैसे चित्रित किया जा सकता है कम शब्दों में ? क्या इसमें विषयांतर हुआ है? बीवी के उन दोनों पत्रों को फाड़े जाने में भी पात्र/पति की मनोदशा आदि अनकहे में है। रचना के बोझिल हो जाने के सभी कारण समझना चाहता हूं। क्या यह विषयांतर्गत लघुकथा नहीं है? मार्गदर्शन निवेदित।
भाई उस्मानी जी, कम्पनी की एनुअल क्लोजिंग चल रही है जिस वजह से मं गोष्ठी में भी अच्छी तरह शिरकत नहीं कर पा रहा हूँ. यही कारण है कि उत्तर देने में देरी नहीं हुई. आपके प्रश्नों का उत्तर बिन्दुवार देने का प्रयास करता हूँ.
1. यह लघुकथा प्रदत्त विषय पर आधारित है, विषयांतर नहीं हुआ है.
2. किन्तु यह लघुकथा पूरी तरह पत्र-शैली में नहीं है. पत्र-शैली बिलकुल वैसी ही है जिस प्रकार हम पत्र लिखते हैं, पत्र लिखने के दौरान हम केवल अपनी बात ही लिखते हैं न कि आस पास हो रही घटनाओं का ज़िक्र करते हैं.
3. बोझिल होने का कारण अनावश्यक विस्तार ले गई बातें हैं, जिन्हें कांट-छांट द्वारा चुस्त किया जा सकता था.
4. यदि आप हाव-भाव-गतिविधियों को चित्रित करना चाहते हैं इस रचना को डायरी शैली में लिख सकते हैं, उसमे पत्र-शैली की तुलना में इस बात का स्कोप कहीं ज्यादा है. (लेकिन अनावश्यक विस्तार से वहाँ भी बचना होगा)
सभी समाधानों के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब। अब मैं रचना में परिमार्जन कर सकूंगा। कृपया डायरी शैली और पत्रात्मक शैली में सोदाहरण अंतर और उनमें अनावश्यक विवरण पर आपके किसी आलेख की लिंक भी दीजियेगा । अथवा ऐसे लेख पोस्ट कीजिएगा। अथवा लघुकथा कलश के आगामी अंक में आलेख / खंंड दीजियेगा। सादर।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
इस लघुकथा को पत्रात्मक शैली का मुलम्मा चढ़ाकर पेश किया जाता तो बहुत सफल और सशक्त लघुकथा बन जाती । आवश्यकता से ज़्यादा विस्तार इसे और दुरूह बना रहा है । इसे सारगर्भित भी किया जा सकता जो बहुत आसान है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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