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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-98

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 98 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब दाग़ देहलवी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं "

2122 1122 1122 112/22

फाइलातुन   फइलातुन    फइलातुन    फइलुन/फेलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :-भी नहीं 
काफिया :- आते (जाते, सताते, भुलाते, मिलाते आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। आपको ग़ज़ल पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। आभार आपका

भाई सुरेन्द्र जी आपकी गजल काबिलेतारीफ है आपकी बहुमुखी प्रतिभा को सलाम

आद0 भैया डॉ छोटेलाल जी सादर अभिवादन। आपकी प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार

आ. भाई सुरेंद्र जी, लाजवाब गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बधाई के लिए बहुत बहुत आभार

स्वागत है आद0 रमेश सचदेवा जी।

sure ! And Please post you comments in hindi . This is an hindi forum.

लज़्ज़त ए वस्ल के अरमान  जगाते भी नहीं ।

ख़्वाब झूटे कभी आँखों को दिखाते भी नहीं ।

बारहा ठोकरें खाई हें मगर फिर भी सनम ।

रह गुज़र से तेरी हम दिल को उठाते भी नहीं ।

कोई ख़ुशरंग भी भरने नहीं देते इसमें ।

अपने दिल से वो मेरा नक़्श मिटाते भी नहीं ।

दोस्त करने लगे इस दर्जा मुरव्वत देखो ।

फ़र्ज़ अब आईना होने का निभाते भी नहीं ।

ग़म किसी का हो भिगो लेते थे पलकें अपनी ।

लोग अब दर्द के रिश्ते को निभाते भी नहीं ।

हम हैं हस्सास हर इक ग़म पे तड़प उठते हैं ।

उनको दरपैश मसाइल कभी आते भी नहीं ।

रू ब रू आते नहीं ख़्वाब में आ जाते हें ।

साफ़ छुपते भी नही सामने आते भी नहीं ।

वो तग़ाफ़ुल के हैं आदी मगर हम भी मिर्ज़ा ।

हाल ए दिल अपना कभी उनको सुनाते भी नहीं ।

मौलिक/अप्रकाशित

अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई आपको मोहतरम मिर्ज़ा जावेद साहिब

मोहतरम शिज्जू शकूर साहिब होसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

बहुत खूब अशआर निकाले। बढ़िया ग़ज़ल जनाब

मोहतरम अजय गुप्ता साहिब तालिब इल्म की ग़ज़ल पर हिम्मत अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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