साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 100वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| पिछले आठ वर्षों से अधिक समय से अनवरत होने वाला यह आयोजन अब अपने सौवें पायेदान पर पहुँच चुका है| इस मील के पत्थर पर पहुंचना, बिना आप सबकी सहभागिता और समर्पण के संभव नहीं था| इस बार के आयोजन को विशेष और यादगार बनाने के लिए नियम और शर्तों में कुछ छूट दी गई है, आप सभी इसे अवश्य ध्यान से पढ़ लें| मिसरा -ए-तरह जनाब समर कबीर साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
मुशायरे की अवधि तीन दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 19 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 21 अक्टूबर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें और दिन में एक बार संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें|
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय सौरभ भाई जी. आपकी इस समीक्षा के क़द के बराबर शब्द ढूँढने में खुद को असमर्थ पा रहा हूँ. लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि,
//रूह में ख़ार उग पड़े लाखों,
किस नज़र से छुआ गया है मुझे.//
इस शेअर की रूह तक पहुंचना आप ही के बूते की बात थी. सच में मैंने इसी भाव को इंगित कसरते हुए ये शेअर कहा था. बहरहाल, मैं नत हूँ आपकी बारीकबीनी के समक्ष. जब कभी मिलेंगे तो गले लगकर शुक्रिया कहूँगा, यह मेरा वादा है. जय जय सौरभ पांडे, जय जय ओबीओ.
ओबीओ ने जो कुछ सिखाया-पढ़ाया है, वही तो नुमाया हुआ है, आदरणीय.
ओबीओ का तो यह ब्रह्मवाक्य ही है - रचनाकार नहीं , सदैव रचना बड़ी होती है.
सादर धन्यवाद कि मेरे विचार समीचीन लगे.
शुभ-शुभ
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी सादर नमन, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. सभी अशआर उम्दा हुए हैं. दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर.
वाह वाह लाजवाब अशआर लिए बेहतरीन ग़ज़ल कही है आदरेय बहुत बधाई स्वीकार करें ।
(दूसरी प्रस्तुति)
जो जी चाहा कहा गया है मुझे
वो अलग कब सुना गया है मुझे
ये ज़माना ख़ुदा कहे उसको
जानवर जो बना गया है मुझे
आसमाँ से गिराते थे सबको
वो ज़मीं से गिरा गया है मुझे
फिर ज़रूरत रही न मेरी और
फिर किनारे किया गया है मुझे
मुझको कहता था कल तलक सूरज
आज जुगनू बता गया है मुझे
जाने कब मुझको जीना आएगा
ज़हर पीना तो आ गया है मुझे
नाम पर ज़िन्दगी के हर कोई
कोरा काग़ज़ थमा गया है मुझे
कुछ सबक भूलने भी होते हैं
ये सबक वो सिखा गया है मुझे
ज़ुल्म की हद बढ़ा दी, जब जाना
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"
पल दो पल में मैं मरने वाला हूँ
तेरा ग़म जानाँ खा गया है मुझे
(मौलिक व अप्रकाशित)
आ. महेन्द्र कुमार जी बहुत बधाई आपको प्रस्तुत ग़ज़ल के लिए
बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी। हार्दिक आभार। सादर।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब,
उम्दा ग़ज़ल मुबारकबाद आपको,,,
हार्दिक आभार आदरणीय अफ़रोज़ 'सहर' जी। बहुत शुक्रिया। सादर।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
दूसरी पेशकश बहुत ही लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
सुखन नवाज़ी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी। हार्दिक आभार। सादर।
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