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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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आदरणीय विनय कुमार जी, आपकी ग़ज़ल का स्वागत है. विद्वद्जनों ने अपनी बातें कहीं हैं. आपकी कोशिश और इस सहभागिता के लिए मैं हार्दिक धन्यवाद कह रहा हूँ. 

शुभकामनाएँ. 

शुक्रिया आदरणीय

जनाब विनय कुमार साहिब बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुब

कुबूल करें

 चौथे शेर का सानी मिस् रा ,मेरे मतले से टकरा गया है

आदरणीय विनय कुमार साहब ग़ज़ल तो आपने बहुत शानदार कही पर मतले में काफियाबंदी गलत कर बैठे..बहरहाल इंसान तो गलतियों का पुतला है..आप भी इसे सही कर लेंगे...मेरी तरफ से ढेर सारी दाद और मुबारकबाद |

//यूँ संभलना सिखा गया है मुझे 
सबके चेहरे दिखा गया है मुझे//

आदरणीय विनय कुमार जी इस 

//अपनी सूरत पे अब गुरुर नहीं 
आईना यूँ  दिखा  गया है मुझे//

शेर को छोड़ आपकी पूरी ग़ज़ल काफिया स्तर पर खारिज हो गयी। 

आदरणीय विनय जी अच्छी गजल के लिए बधाई कुबूल कीजिए

               

दूसरी प्रस्तुति

प्यार ऐसे  भुला  गया  है  मुझे

 कोई  दिल से चुरा गया है मुझे

 

 है  अगर  यार शायरी जो कही,

हुनर चोरी  सिखा गया  है मुझे

 

वक्त  करता  मज़ाक साथ लगा,

“सब्र  करना तो आ गया है मुझे”

 

जीत  होती  दिखी  नगर की जब,

वो  सियासत  बना  गया है मुझे

 

आँख  रोती  लगी  मुझे  अपनी,

क्या था रिश्ता रुला गया है मुझे

 

सोच कर मैं यकीं किया था हमें,

झूठ  सपने  दिखा गया है मुझे

 

आदमी तो  रहा  नहीं है जहाँ,

जानवर सा  बना  गया है मुझे

 

उड़ रहा  आसमां अभी तक था,  

तू जमीं पर गिरा गया है मुझे

मौलिक व अप्रकाशित

आ. मोहन बेगोवाल जी बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए

   शिज्जू भाई जी , बहुत शुक्रिया जी 

आयोजन में इस दूसरी प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। सादर।

जनाब मोहन बेगोवाल साहिब,

इस पेश कश पर मुबारकबाद क़बूल करें

२रे शे'र का सानी मिसरा बह्र में नहीं है,,

बाक़ी अश्आर मज़ीद कसावट चाहते हैं,

ग़ज़ल को अभी और वक़्त चाहिए,

आदरणीय मोहन जी, दूसरी ग़ज़ल के लिए. हार्दिक बधाई.

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
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