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Shamsi Ji, ek ek she'r laajwaab hai.. Badhai swikaar karen
Surnder Ratt
Mumbai
बहुत ही कमाल की गज़ल कह डाली है आपने दाद कबूल करें।
जिनकी सिक्कों की खनक से ही नींद खुलती हो,
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद लगाई जाए !
कमाल के शे‘र के लिए मुबारकबादे खास
वाक़ई आज मालो दौलत के पीछे पड़ी इस दुनिया को सिर्फ सिक्कों की ही खनक सुनाई देती है, जिसमें आह-चीख-पुकार दब के रह जाती है।
चढ़ते सूरज की इबादत तो सभी करते हैं,
टूटे-हारों से चलो प्रीत निभाई जाए...
bahut hi umda..bahut badhai..prabhaji..
बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है प्रभा जी आपने। मत्ले में कमाल की गिरह बाँधी है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।
बहुत खूब !!!
//चढ़ते सूरज की इबादत तो सभी करते हैं,
टूटे-हारों से चलो प्रीत निभाई जाए...//
ये ख्याल कमाल का है - बहुत खूब !!!
//जिनकी सिक्कों की खनक से ही नींद खुलती हो,
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद लगाई जाए !//
आहा हा हा हा !! क्या बाकमाल बात कह गए - खूब !
//अहदे हाज़िर मे गमख्वार कौन है 'रावी',
लड़ी अश्कों की ना हर बार सजाई जाए...//
या बहुत बड़ी विडम्बना है रावी जी, एक चैतन्य इन्सान ज़माने की उदासीनता देखकर अंत में शायद ये ही सोचने पर मजबूर हो जाता है कि ."मर्द-ए-नादाँ पर ......................बेअसर ! आपके जज्बात हलाकि काबिल-ए-एहतराम हैं लेकिन बतौर शायर हमें उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है ! बहरहाल, इस पुरनूर और पुरअसर आशार के लिए आपको दिल से मुबारकबाद देता हूँ !
चढ़ते सूरज की इबादत तो सभी करते हैं,
टूटे-हारों से चलो प्रीत निभाई जाए...
वाह वाह क्या शेर कह दिया आपने बहुत उम्दा ख़याल की ग़ज़ल बधाई !!!
बहुत-बहुत बधाइयाँ.
//जिनकी सिक्कों की खनक से ही नींद खुलती हो,
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद लगाई जाए ! //
विशेषकर इस अशआर पर मेरी शुभकामनाएँ कुबूल फ़रमाएँ.
अमन के फूल खिलाना भी कोई खेल नही,
आँधी नफ़रत की पहले मिटाई जाए...
khubsurat
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