For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-124

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 124वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब राहत इंदौरी  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए "

 2122       2122       2122      212

फ़ाइलातुन   फ़ाइलातुन      फ़ाइलातुन           फ़ाइलुन

बह्र:  रमल मुसम्मन महज़ूफ़

रदीफ़ :-  चाहिए
काफिया :- आनी ( पानी, कहानी, निशानी, पुरानी, दानी आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 24 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9670

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हक़ तेरे शानों पे मुझको जाविदानी चाहिए.
मेरे सर को भी तो कोई राजधानी चाहिए.(1).

मुझको भी अशआर में कुछ ख़ुशबयानी चाहिए,
तिफ़्ल को भी या ख़ुदा! अब नौजवानी चाहिए (2).

लहलहाती, खिलखिलाती ज़िंदगानी चाहिए,
वादीए-कश्मीर फिर से जाफ़रानी चाहिए. (3).

रात की तारीकियाँ भी जान से मुझको अज़ीज़
और होंगे लोग जिनको रातरानी चाहिए (4).

ख़ौफ़ खाएँ अपने प्यादों-पैदलों से बादशाह
बस अना की आग को ऐसी कहानी चाहिए (5).

जब रज़ा पूछी ख़ुदा ने, मैं कहूँगा बस यही,
तितलियों की, जुगनुओं की बाग़वानी चाहिए. (6)

दर्द का ज़र-सीम हो, ज़रदोज़ सी कारीगरी,
शायरी की रूह को वो शेरवानी चाहिए. (7).

ज़र्द चेहरा, सर्द आहें, फ़र्द पर हमदर्द है,
और इक शायर की तुमको क्या निशानी चाहिए. (8).

यार सूरज सुन, तेरी ही सलतनत का जुज़ हूँ मैं,
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए. (9)
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

आ. योगराज सर,
ग़ज़ल के मैदान में आपको पुन: देखकर बहुत अच्छा लगा. 
हमेशा की तरह उम्दा विचार और कहन से भरपूर ग़ज़ल के लिए बधाई ...
कुछ मिसरों में विसंगति है जो संज्ञान में लाना चाहता हूँ..
 
हक़ तेरे शानों पे मुझको जाविदानी चाहिए.... शरीर ही नश्वर है तो शानों पर जाविदाँ हक़ माँगना उलझन में डालता है.
.
मुझको भी अशआर में कुछ ख़ुशबयानी चाहिए,
तिफ़्ल को भी या ख़ुदा! अब नौजवानी चाहिए ... यहाँ मिसरों में कोई सीदा रब्त नहीं है ... बहुत सोचने के बाद शाइर का नज़रिये को अपनाने के बाद अर्थ स्पष्ट होता है लेकिन क्या आपकी ग़ज़ल सिर्फ़ शाइर ही पढेंगे?
.
वादीए-कश्मीर फिर से जाफ़रानी चाहिए.. स्माईली कैसे भेजते हैं नहीं पता लेकिन ..साहब भी यही चाहतेहैं कि वादी जाफ़रानी यानी सेफ्रोन हो जाए :D :)
.
ख़ौफ़ खाएँ अपने प्यादों-पैदलों से बादशाह
बस अना की आग को ऐसी कहानी चाहिए... यहाँ भी मिसरों में रब्त कम लग रहा है...आपने कहा है तो कुछ सार्थक ही होगा लेकिन आमफहम नहीं है यह थॉट...
"शेरवानी" बहुत बढ़िया है और आप पर जंच भी बहुत  रही है...
वैसे ही शाइरों और कवियों से लोग कतराते हैं ऊपर से आप उनकी निशानियाँ यूँ ज़ाहिर कर रहे हैं..:) अटल जी की तरह कहता हूँ.."ये अच्छी बात नइ ए"
उम्दा भावों से भरी ग़ज़ल के लिए पुन: बधाई ... come back इनिंग है.. धीरे धीरे टाइमिंग और प्लेसमेंट दोनों बेहतर होंगे 
यही आशा है..
बधाई  

योगराज प्रभाकर जी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई ! मतले में सर के लिए राजधानी ये प्रयोग मैं नहीं समझ सका .गिरह ख़ूब लगी. 

आ. भाई योगराज जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

एक उम्दा गजल हेतु ढेर सारी बधाइयां, आदरणीय योगराज जी।

आदरणीय योगराज प्रभाकर साहब
सादर अभिवादन
एक उम्द: तरही ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें. आपको इस मंच पर पढ़कर मन 

सुखद एहसास से भर गया.सलामत रहेंं.

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी नमस्ते, ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, ख़ासतौर पर छठा और आठवां शेर बहुत कमाल हुआ है विशेष बधाई।

जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन लगता है आप इसे वो समय न दे सके जो देना था,बधाई स्वीकार करें ।

बहुत कुछ तो जनाब निलेश जी इंगित कर चुके हैं,जो उनसे छूट गया है उसकी तरफ़ आपका ध्यान चाहूँगा ।

'वादीए-कश्मीर फिर से जाफ़रानी चाहिए'

इस मिसरे में 'वादी-ए- शब्द को "वादि-ए-'' लिखना उचित होगा ।


'रात की तारीकियाँ भी जान से मुझको अज़ीज़
और होंगे लोग जिनको रातरानी चाहिए'

ऊला में तारीकियाँ और सानी में रात रानी का कोई रब्त नहीं,ग़ौर करें ।

'ख़ौफ़ खाएँ अपने प्यादों-पैदलों से बादशाह'

इस मिसरे में 'पियादों' का वज़्न 122 होता है,आपने इसे 22 पर लिया है जो ग़लत है,दूसरी बात 'पियादा'और 'पैदल' दोनों एक ही हैं ,देखियेगा ।


'दर्द का ज़र-सीम हो, ज़रदोज़ सी कारीगरी'

इस मिसरे में बात स्पष्ट नहीं हो रही है,दूसरी बात "ज़रदोज़" कोई शब्द नहीं है,हाँ एक फ़ारसी का शब्द है "ज़र अंदूद:"यानी सोने का मलमम'अ किया हुआ,देखियेगा ।

'ज़र्द चेहरा, सर्द आहें, फ़र्द पर हमदर्द है'

इस मिसरे में 'फ़र्द पर हमदर्द है' टुकड़े में वाक्य विन्यास मुझे ठीक नहीं लगा,इसकी जगह "और दिल हमदर्द" लिया जा सकता है ।

गिरह उम्द: है ।

उम्द: या उम्दा?

उम्द:

सादर नमन आदरणीय। बेहतरीन गिरह के साथ  ग़ज़ल के बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई क़ुबूल करें जी।

कमाल....धमाल, बड़ी तसल्ली से लिखी गई ग़जल है। क्या गिरह लगाई है, जनाब ! खुदा सलामत रखे !

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post पूजा बता रहे हैं
"आ0 अखिलेश  कृष्ण  श्रीवास्तव  जी, पटल पर आपकी अधूरी प्रतिक्रिया देख पा रही हूँ। जो…"
Thursday
Usha Awasthi posted a blog post

पूजा बता रहे हैं

पूजा बता रहे हैं उषा अवस्थीपाले हैं,यौन कुंठापूजा बता रहे हैंन जाने ऐसे लोग किस राह जा रहे हैं?रचते…See More
Thursday
Euphonic Amit commented on Samar kabeer's blog post 'वतन को आग लगाने की चाल किसकी है'
"बिहतरीन ग़ज़ल आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम। वाहह वाह। सादर चरण स्पर्श "
Wednesday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"सुनन्दरम।"
Tuesday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on सतविन्द्र कुमार राणा's blog post दिख रहे हैं हजार आंखों में
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन, मार्गदर्शन के लिए सादर आभार। नुक्ता कहीं भी प्रयासपूर्वक नहीं लगाया है। सच…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"वाह दिनेश जी वाह बहुत ही सुन्दर रचना "
Monday
दिनेश कुमार posted blog posts
Dec 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post एक ताज़ा ग़ज़ल
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Dec 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Dec 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२ * सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१। * अब भी प्यासा हूँ इक…See More
Dec 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"क्या नैपथ्य या अनकहे से कथा स्पष्ट नहीं हो सकी?"
Nov 30

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)
"भाई, शैली कोई भी हो किन्तु मेरे विचार से कथा तो होनी चाहिए न । डायरी शैली में यह प्रयास हुआ है ।"
Nov 30

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service