For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-125

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 125वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की "

 2122           1122            1122                112

फ़ाइलातुन   फ़इलातुन      फ़इलातुन           फ़इलुन/फ़ेलुन

बह्र:  रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप

रदीफ़ :-  नहीं की
काफिया :- इश ( नुमाइश, बारिश, ख़्वाहिश, जुम्बिश, कोशिश, गुजारिश, आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 नवंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 28 नवंबर  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8241

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

तरही ग़ज़ल ः

2122 1122 1122 22 ( 112 )

ज़ब्र -ओ्- ज़ुल्म की दुनिया में रिहाइश नही की
गर सहारा वो ज़रूरी था तो ख्वाहिश नहीं की

जुल्म हम पर हुआ हमने भी पुकारा उनको
दोस्तों ने तो हमारी वो सिफारिश नहीं की

वक़्त से तो हमे कोई भी शिकायत कब रही
अब के सावन ने ही कैसी भी तो बारिश नहीं की

राबतों को तो सँभाला था हमीं ने या रब,
एकतरफा वो मरासिम हों ये कोशिश नहीं की

गिरहः

चोट खायी थी रक़ीबों से तो नालिश नहीं की
हमने बाज़ार में ज़ख्मों की नुमाइश नहीं की

आशना हम तो थे 'चेतन' वो तुम्हारे ही सनम
एक तुम हो कि मुहब्बत की गुजारिश नहीं की

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल हुई । इस रदीफ़ के साथ तंग क़ाफ़िया होने के बावजूद आपने अच्छी ग़ज़ल कही। आदरणीय,ज़ब्र-ओ-ज़ुल्म के वज़्न पर शंका है।

सादर।

आदरणीय समर कबीर साहब, सप्रेम वंदे ! आदरेय, मेरी प्रस्तुति की आपने कृपा कर सुमधुर व्याख्या की, इसके लिए एतद्वारा आपको अनन्य धन्यवाद प्रेषित करता हूँ । आपने सही फरमाया, "ज़ब्र ओ जुल्म' मे संदेह की गुंजाइश है, सो श्री जी, आपका निर्देश शिरोधार्य है। और, 'कब रही' भी, 'कब थी', ही होना चाहिए, सादर आभार सहित शुभ संध्या, आदरणीय !

  

आदरणीया रचना भाटिया जी सप्रेम वंदे । आदरेया मेरी प्रस्तुति की आपने कृपा कर सुमधुर व्याख्या की, इसके लिए एतद्वारा आपको अनन्य धन्यवाद प्रेषित करता हूँ । आपने सही फरमाया, ज़ब्र ओ जुल्म मे संदेह की गुंजाइश है, सो सुश्री जी, आपका निर्देश शिरोधार्य है।

आ. भाई चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

  

बंधुवर, लक्ष्मण धामी मुसाफिर, शुभ संध्या! आपको ग़़ज़ल अच्छी लगी, इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र है। कृपया उत्साह वर्धन करते रहे। साभार !

आदरणीय चेतन जी नमस्कार

अच्छी ग़ज़ल हुई।

बधाई स्वीकार करें।

Su shri Richa yadav, शुभ संध्या। आपको ग़़ज़ल अच्छी लगी, इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र है। कृपया उत्साह वर्धन करते रहे।

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'वक़्त से तो हमे कोई भी शिकायत कब रही'

इस मिसरे में 'रही' की जगह "थी" कर लें तो बह्र ठीक हो जाएगी ।

गिरह के मिसरे पर शैर कहना है,मतला नहीं ।

आदरणीय समर कबीर साहब, सप्रेम वंदे ! आदरेय, मेरी प्रस्तुति की आपने कृपा कर सुमधुर व्याख्या की, इसके लिए एतद्वारा आपको अनन्य धन्यवाद प्रेषित करता हूँ । आपने सही फरमाया, ज़ब्र ओ जुल्म मे संदेह की गुंजाइश है, सो श्री जी, आपका निर्देश शिरोधार्य है। और, 'कब रही' भी, 'कब थी', ही होना चाहिए, सादर आभार सहित शुभ संध्या, आदरणीय !

मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।

जब हम 'और' शब्द की मात्रा गिराते हैं तो उसके लिये हमें पूरा शब्द और ही लिखना चाहिये मात्रा अपने आप गिर जाएगी, 'ओ' लिखने से वाव अत्फ़ का धोका होता है, "और" लिखने से इसकी मात्रा 2 हो जायेगी, और ये 'उर' पढ़ ज्सआएगा जिसकी मिसरे में ज़रूरत है:-

'ज़ब्र और ज़ुल्म की दुनिया में रिहाइश नही की'

ये मिसरा इस तरह लिखना उचित है ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर आ रे, सूरज आजमा, किसमें कितना जोर     मूरख…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी कोशिशों पर तो हम मुग्ध हैं, शिज्जू भाई ! आप नाहक ही छंदों से दूर रहा करते हैं.  किसको…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा आधारित एक रचना: प्यास बुझाएँगे सदा सूरज दादा तुम तपो, चाहे जितना घोर, तुम चाहो तो तोड़ दो,…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, सदा की भाँति इस बार भी आपकी रचना गहन भाव और तार्किक कथ्य लिए हुए प्रस्तुत…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त चित्र को सार्थक दोहावली से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है.  तन…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पैसा है तो पीजिए, वरना रहो अधीर||...........वाह ! वाह ! लाख टके की बात कह दी है आपने.…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय शिज्जु शकूर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर दोहे रचे हैं आपने. सच है यदि धूप न हो…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत दोहों की सराहना के लिए आपका हृदय…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. आपकी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! भाई लक्ष्मण धामी जी आप जो कह रहे हैं मन के मार्फ़त या दिल के मार्फ़त उस बात को मैं समझ…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सार्थक दोहावली के लिए| दोपहर और …"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service