परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 131वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जिगर मुरादाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं "
221 2121 1221 212
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मफ़ाईलु फ़ाइलुन
बह्र: मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय भाई Sanjay Shuklaजी,
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आ. भाई सालिक जी, सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी,
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीय भाई dandpani nahak' जी,
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीया रचना जी
सादर अभिवादन
आद.नवीन जी अच्छी ग़ज़ल कही है सातवें शेर के ऊला में है शब्द अपनी जगह से हट गया इसी लिए बहर में गड़बड़ हुई है शायद।ठीक कर लें
मेरी मुबारकबाद कुबूल करें।
आद.सालिक साहब बहुत ख़ूब अच्छी ग़ज़ल कही आपने।मेरी मुबारकबाद आपको।
आदरणीया राजेश दी
सादर प्रणाम
ग़ज़ल पर आपकी शिर्क़त और सराहना के लिए ममनून हूँ।
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आ सालिक गणवीर जी, मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्क़त और सराहना के लिए ममनून हूँ।
सालिक' ज़ियादा की तो ज़रूरत नहीं मुझे
जितना भी दे दिया है ख़ुदा ने वो कम नहीं
आदरणीय सालिक जी बहुत ख़ूब...
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