For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-135

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 135वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हसरत मोहानी साहब की गजल से लिया गया है|

"अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम "

   221        2121       1221         212

मफ़ऊलु     फ़ाइलातु     मफ़ाईलु    फ़ाइलुन

बह्र:  मज़ारे  मुसम्मन अख़रब  मक्फूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ :-  से हम
काफिया :- आँ( ज़बाँ, कहाँ, धुआँ, कारवाँ, आसमां, इम्तिहाँ, जहाँ आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 सितंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 25 सितंबर  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 सितंबर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8626

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'कच्ची सी उम्र लोगो ने सुलगाई आग यूँ
शोले हुए न, बिखरे हैं केवल धुआँ से हम'

'धुआँ' क़ाफ़िया इस ज़मीन के लिये उचित प्रतीत नहीं होता ।

'करके खिजाब दिखते हैं चल नौजवाँ से हम'
इस मिसरे में 'कर के ख़िज़ाब' व्याकरण की दृष्टि से उचित नहीं,देखियेगा,और 'चल' की जगह "अब" शब्द पर भाई चेतन जी से सहमत हूँ ।

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए आभार।

'कच्ची सी उम्र लोगो ने सुलगाई आग यूँ
शोले हुए न, बिखरे हैं केवल धुआँ से हम'

'धुआँ' क़ाफ़िया इस ज़मीन के लिये उचित क्यों नहीं हैं ? स्पष्ट करते हुए मार्गदर्शन करें जिससे होने वाली गलतियों से बचा जा सके। ( वैसे तरही मिसरे के साथ दिये गये काफिया में धुआँ भी शामिल है।) इससे मुझ जैसे विद्यार्थियों से भूल होना स्वाभाविक है ।

*
व्याकरण व अन्य दोष के लिए इंगित मिसरे में बदलाव किया है , मार्गदर्शन कीजिए।

'//आओ लगा खिजाब दिखें नौजवाँ से हम'

//वैसे तरही मिसरे के साथ दिये गये काफिया में धुआँ भी शामिल है//

जी,ये मंच संचालक महोदय से शायद भूलवश हो गया ।

'आओ लगा खिजाब दिखें नौजवाँ से हम'

इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'यारों लगा ख़िज़ाब दिखें नौजवाँ से हम'

//वैसे तरही मिसरे के साथ दिये गये काफिया में धुआँ भी शामिल है//

जी,ये मंच संचालक महोदय से शायद भूलवश हो गया ।

इस तथ्य को स्पष्ट करें, आदरणीय समर साहब. 

उर्दू लिपि के विन्यास के अलावा और कोई कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा. 

कोई अन्य कारण हो तो कृपया स्पष्ट करें. 

जय-जय

//उर्दू लिपि के विन्यास के अलावा और कोई कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा. 

कोई अन्य कारण हो तो कृपया स्पष्ट करें.//

और कोई दूसरा कारण नहीं है "धुआँ" क़ाफ़िया इस ज़मीन में बाँधना मुझे तो सम्भव नहीं लगता, आप क्या कहते हैं,क्या इस क़ाफ़िया को इस ज़मीन में बाँधा जा सकता है?

चलिए, आदरणीय, एक बात तो स्पष्ट हुई कि धुआँ शब्द को लेकर लिपि की कोई दखल नहीं है. बल्कि, आप भाषा के व्याकरण के हवाले से कह रहे हैं. यानी, 'धुआँ से हम' के स्थान पर 'धुएँ से हम' का प्रयोग उचित होगा. आकारान्त शब्दों के प्रयोग में पुरानी परिपाटी के अनुसार यह उचित है. जैसे, मैं पटने में रहता हूँ. यह शहर कलकत्ते-सा लगता है. आदिक. 

किन्तु, अब 'मैं पटना में रहता हूँ' को गलत नहीं माना जाता. या, 'यह शहर कलकत्ता-सा लगता है' भी स्वीकार्य है. 

इस हिसाब से, पटने, कलकत्ते, या धुएँ अपने मूल शब्दों का बहुवचन नहीं है. जब बहुवचन ही नहीं है तो पटना, कलकत्ता या धुआँ आधुनिक प्रयोग के अनुसार सही है. 

यही मेरा निवेदन है. 

आ. भाई सौरभ जी , सादर अभिवादन। आपके विचारों से दुविधा दूर हुई और नया कुछ सीखने को मिला । इसके लिए हार्दिक आभार ।

आदरणीय सौरभ जी, नमस्कार

बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस विषय पे प्रकाश डालने के लिए,

 कुछ नया जानने को मिला,आभार आपका।

सादर

आदाब, आदरणीय सौरभ साहब, कलकत्ता, पटना साधारण  संज्ञाएं  नहीं हैं, विशेष इतिहास प्रसिद्ध शहरो  की नाम वाचक  संज्ञाएं   (proper nouns)  हैं ।अत: माननीय स्थापित संज्ञाएं  हैं और उनका  बहुवचन  सम्भव ही नहीं  है! सो 'धुआँ से उनकी समानता, कहना न होगा, व्याकरण  की दृष्टि से उचित  नहीं जान  पड़ती !

आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपने सही कहा।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आप आकारान्त संज्ञाओं का संदर्भ लेते हुए इस तथ्य की बारीकियों को समझने का प्रयास करें. शहर और धुआँ आदि की संज्ञाओं के भेद पर अन्यथा आग्रही न हों.

आपकी बातों का हर तरह से संज्ञान लिया गया

शुभ-शुभ

 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
22 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service