आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत बढ़िया आदरणीय सीमा सिंह जी ,बधाई ।
स्त्री की उड़ान को कैसे रोकना है ये पुरुष जानते हैं अच्छे से , एक बात दिमाग़ में कौंध रही है कि यहाँ पर स्त्री का दलित बताना क्या जरूरी था , वो सीनियर थी पदोन्नति की हक़दार तो वैसे ही थी , हार्दिक बधाई स्वीकार करें एक सशक्त कथा के लिए आदरणीया सीमा जी
बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बच्चों और गृहस्थी में उलझकर कितनी ही महिलाएं कैरियर त्याग देती हैं| बधाई आपको
मोहतरमा सीमा साहिबा , प्रदत्य विषय को परिभाषित करती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आ. सीमा जी इस दमदार रचना के लिए बधाई आपको. एक स्त्री की भावनाओ के साथ छल करके कामयाबी का षडयंत्र. सार्थक रचना
आदरणीया सीमा जी, सुन्दर कथा. दफ़्तर की उठा पटक को सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है. पल्लवी को दलित बताने से ब्राम्हण की कुटिल चाल का एक और रुप दिखाया गया है. सादर,
दोस्त बन कर पीठ में चाक़ू भोंकने वाली मानसिकता को बहुत खूब संदर्भित किया है आपने आदरणीया सीमा जी .प्रतियोगी से सामना न कर पाने की अवस्था में प्रतिभा को दबाने के लिए लोग ऐसे ही तरह -तरह के चाले चलते है . समाज में व्याप्त इस कोढ़ की तरह फैलती मानसिकता को बाहर खींच बहुत खूब रचनाधर्मिता का निर्वाह हुआ है . बहुत-बहुत बधाई आपको
आदरणीया सीमा जी, दंग हूँ इस लघुकथा को पढ़कर. सहज भाषा और धाराप्रवाह शाब्दिक हुई इस लघुकथा का अंत झटका भी देता है और चकित भी करता है. षड्यंत्र विषय जो जिस महीनी से इस लघुकथा में प्रस्तुत किया गया वह मुग्ध करता है. इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
वाह सीमा जी। यह आपका निशानची ऐसे बढ़िया तरीके से निशाना लगाना जानता है। लेकिन वह भूल गया कि वह आपके निशाने पर है। उसके षड्यंत्र का पर्दाफाश करने के लिए आपने जो निशाना साधा , चूका वह भी नहीं। आपकी इस गन के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं।
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