परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 161 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब मुहसिन नक़वी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
"मैं अपने आप से कम बोलता हूँ"
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
बह्र-ए-हजज़ मुसद्दस महज़ूफ़
रदीफ़ :- हूँ
क़ाफ़िया:-अलिफ़ का (आ स्वर)
देखता,आ गया,सोचता,मुब्तिला, दवा आदि...
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय सुरेंद्र जी
बहुत शुक्रिया आपका
सादर
आ. ऋचा जी,
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई.
आदरणीय नीलेश जी
बहुत शुक्रिया आपका
सादर
आदरणीया ऋचा जी नमस्कार। आवश्यक सुधार करने के बाद ग़ज़ल अच्छी हो जाएगी। बधाई स्वीकारें।
आदरणीया रचना जी
बहुत शुक्रिया आपका ,सुधार की कोशिश है
सादर
अच्छी ग़ज़ल हुई ही आदरणीया रिचा यादव जी। गुणिजनों ने बहुत उपयुक्त सुझाव दिए हैं जी
सभी को मैं भले जलता दिया हूँ
उजाला किन्तु निज हित ढूँढता हूँ।१।
*
सुखों की भी नदी लाऊँगा लेकिन
अभी तो दुर्दिनों से मैं धिरा हूँ।२।
*
नहीं कमजोर अब भी हौसला है
भले गिर धूल में लथपथ पड़ा हूँ।३।
*
कभी हर बोझ घर का था उठाया
बुढ़ापे में स्वयम् बोझा हुआ हूँ।४।
*
भले यह भीड़ दिखती साथ तुमको
अकेलेपन का पर मैं काफिला हूँ।५।
*
तुम्हारे गाँव में हूँ इक अजनवी सा
वतन भर में भले चर्चित हुआ हूँ।६।
*
पता क्योंकर "मुसाफिर" पूछते तुम
कि मंजिल से भला कब मैं मिला हूँ।७।
गिरह-
न पूछो आप मेरी बात मुझ से
"मैं अपने आप से कम बोलता हूँ"
*
*
मौलिक अप्रकाशित
तरही मिसरे पर एक अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई लक्ष्मण भाई ।
आ. भाई अजय जी, हार्दिक आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'सभी को मैं भले जलता दिया हूँ'
इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं,देखिएगा ।
'भले गिर धूल में लथपथ पड़ा हूँ'
इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं, देखिएगा ।
'तुम्हारे गाँव में हूँ इक अजनवी सा'
ये मिसरा बह्र में नहीं 'इक' शब्द हटाएँ ।
गिरह अच्छी है ।
आ. भाई समर जी सदर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति स्नेह और अनमोल सुझाव देने के लिए आभार।
इंगित मिसरों में सुधार किया है मार्गदर्शन करने की कृपा करें -
/
मैं सब के हित भले जलता दिया हूँ
/
'भले गिर खून से लथपथ पड़ा हूँ'
कि लथपथ खून से चाहे पड़ा हूँ
//
अभी मिसरे और मिहनत चाहते हैं ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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