आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, लघुकथा का बढ़िया प्रयास हुआ है. गुनीजनों के मार्गदर्शन अनुसार संशोधन हो जाये तो एक बेहतरीन लघुकथा ब जाएगी. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आद० मोहन बेगोवाल जी, बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा के लिए |
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
मोहतरम जनाब मोहन बेगोवाल साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
बहुत ही बढ़िया भाव उठाए थे आप ने . इस भाव के लिए बधाई .
बहुत भावपूर्ण और सुंदर रचना विषय पर, बहुत बहुत बधाई
कर्म प्रधान - (लघुकथा) -
आचार्य बेनी प्रसाद शर्मा अपने इकलौते बेटे माधव प्रसाद को अपनी ही तरह किसी विद्यालय का प्राचार्य बनाना चाहते थेl उनका परिवार पिछली सात पीढ़ियों से शिक्षा और ज्योतिष में पूरे इलाक़े में मशहूर थाl लेकिन माधव किसी और ही मिट्टी का बना थाl उसकी पढ़ाई में कोई खास रुचि नहीं थीl माँ के बचपन में ही गुज़र जाने से माधव कुछ भटक गया थाl हालाँकि आचार्य जी ने माधव को सही मार्ग पर लाने के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया थाl जैसे तैसे माधव को शहर के एक अच्छे संस्कृति विद्यालय में दाखिला दिला दिया थाl मगर वह अपने पिता के मंसूबों को पूर्ण करने के प्रति कतई गंभीर नहीं थाl आचार्य जी उसे अकसर अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिये प्रेरित करते रहतेथेl
लेकिन माधव का एक ही जवाब होता था,"यह सब आपकी खामख्याली और दकियानूसी बातें हैंl विरासत नाम की कोई चीज़ नहीं होतीl सब कुछ कर्म और नसीब होता है"l
माधव अपनी एक सहपाठी सुधा से प्रेम कर बैठाl माधव से प्रेम के बावज़ूद सुधा ने अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया और सदैव प्रथम आती रहीl माधव भी जैसे तैसे पास हो जाता थाl
आचार्य जी के लाख समझाने और विरोध करने के बावज़ूद माधव ने सुधा से प्रेम विवाह कर लियाl आचार्य जी ने माधव से संबंध तोड़ दिये क्योंकि सुधा एक धोबी की बेटी थीl
सुधा अपनी प्रतिभा की बदौलत एक विद्यालय की प्राचार्य बन गयीl माधव ने एक ड्राईक्लीनिंग का शोरूम खोल लियाl
आचार्य जी को पता चला तो अचानक माधव के शोरूम पर पहुँच गये,"वाह माधव, क्या उन्नति की है,एक कुलीन ब्राह्मण होकर एक धोबी का कार्य कर रहे होl पूर्वजों की विरासत की धज्जियाँ उड़ा दीं"l
" परंतु पिताजी, आपके लिये एक खुश खबरी भी है, आपकी पुत्रबधु तो आपकी ही विरासत को आगे बढ़ा रही है"l
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