आदरणीय साथिओ,
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आ० नयना ताई फिलहाल यह लघुकथा मेरे सर के ऊपर से गुज़र गई, मुझे तो कुछ समझ नहीं आयाI कुछ समझ आया तो बाद में टिप्पणी करूंगाI यदि भाई उस्मानी जी इस कथा के बारे में कुछ रौशनी डालें तो शायद कुछ समझ आ जाएI
आ. भाई जी प्रणाम अब क्या कहूँ, प्रयास तो पूर किया है. फिर से लघुकथा पर चिंतन करने की कोशिश करूँगीआभारी हूँ. मार्च की व्यस्तता के बीच शायद चिंतन को सही दिशा नहीं मिल पाई. "पाँच साल पहले वो ब्लाऊज हटा कर कंधे का दाग देखना......! एकबार फिर से वह बस ठगी सी खडी रह गई। "---- वैसे ये जो अनकहा था मुझे लगा सब अपने अपने अलग-अलग कयास लगाएंगे और यही एक बिंदू भी है लघुकथा का.
फ़िर से चिंतन का प्रयास करती हूँ.आपका प्रश्न अनुत्तरित ना रहने पाए.
आ. भाई जी प्रणाम, मेरी मूल कथा का ड्राफ़्ट यहा चस्पा कर रही हूँ. लघु करने के चक्कर मे जो काट-छांट की उसमे शायद मै उलझ गई थी. फिर उसे पढ ना पाई और ३०-३१ कि व्यस्तता मे कही आयोजन छूट ना जाए तो पहली फ़ुरसत मे यहाँ पोस्ट कर दी. अभी दोपहर अवकाश मे आई हूँ .तो मूल कथा आपको भेज रही हूँ. रिटन अपलोडिंग के अंतिम क्षणो मे शाम को शायद वक्त ना मिले.इसके बाद भी रचना उलझती सी लगे तो आयोजन से हटाने पर भी मुझे दूख ना होगा क्योकि सच मे मै इस पर ज्यादा वक्त ना दे पाई थी, सादर
एक प्रश्न अनुत्तरित-सा----
सोमेश की माँ और रुपा भाभी उसे जब देखने आयी थी. नेहा को लगा था कि वे थोड़ी नकचढी हैं और जबान पर काबू नही है. बडी बहू है ना घर की तो ठसका है शायद. देखने दिखाने की रस्म के बाद रुपा भाभी अचानक उसका हाथ पकड कमरे मे ले आई और बोली
"जरा ब्लाउज की बाह नीचे करना , देखूँ तुम्हारे शरीर पर कही दाग तो नही है. वो क्या है कि तुम्हारे घर से जो स्लीवलेस ब्लाउज के साथ की फोटो आई है ना उसमे कंधे पर कुछ दाग है ऐसा लगा तो सोचा देख ही लूँ. बाद मे..." बडा अपमानित महसूस किया था उसने.
उनके जाने पर माँ से विरोध भी जताया था तो माँ ने कहा था
" बेटा अच्छा है जो भी उन्हें लगा होगा पहले ही देख लिया , बाद मे कुछ नौटंकी करने से तो बेहतर है"
" मगर माँ! वो हमसे सीधे-सीधे पूछ भी तो सकती थी, ये ब्लाउज हटाकर... क्या मेरा कोई वजूद नही हैं."
" बेटा लडका अच्छा है .इन बातो को ज्यादा दिल से नही लगाते." सब ठीक होगा ." माँ बोली थी. एक आम मध्यमवर्गीय लडकी की तरह वो भी बस चुप हो गई थी. मगर वो बात कही ना कही उसे हमेशा अंदर तक सालती रही.
ससुराल आकर पता चला था कि भाभी ना तो नकचढी है ना ही कोई ठसक ... बचपन मे उबलती चाय गिर जाने से उनके छाती पर बना दाग उनके लिए नासूर बन गया था और फिर जेठजी ने तो ऐसा दाग दिया कि...बताते बताते हर बार जीभ उनके तालू पर चिपक जाती और आँखो से बस सैलाब बह निकलता.
सोमेश भी वैसे तो अधिकतर दौरे पर रहते मगर देवर भाभी भी तो सालो से अबोला किए बैठे थे. मगर क्यों ? क्या होगा इसके पिछे?
अपने पति सोमेश से भी कई बार पूछा पर जैसा कि हर घर में होता है! उसे एक ही जवाब मिलता "अभी तो खुश रहो वक्त आने पर सब बता दूँगा."
आज ऐसा वक्त आया कि आय सी यू के बाहर बैठे-बैठे ह्रदय की धड़कने तेजी से चल रही थी पता नहीं क्या हुआ था रुपा भाभी को जो इतना बडा कदम उठा लिया. ऐसा क्या हुआ होगा जो दिल से लगा बैठी. सोमेश से पूछ्ने पर भी इस बार भी बस सिर्फ़ मौन.
नर्स दौडती हुई आयी "जल्दी चलिए पेशेन्ट की हालत बहुत खराब है."
" भाभी! भाभी! आँखे खोलिए...नेहा ने रुपा भाभी का हाथ थामते हुए कहा। रुपा भाभी आँखें खोलने का प्रयत्न कर रही थी. बोलने की कोशिश में उनके शब्द हलक मे ही अटक कर रह गये.
पलटकर देखा सोमेश मूँह पर उंगली रख उन्हें चूप रहने का इशारा कर रहे थे.
सब कुछ चलचित्र सा चल गया दिमाग में.विचार तेजी से चक्कर काट रहे थे। वो ब्लाऊज हटा कर कंधे का दाग देखना...... सोमेश का दौरे के नाम हरदम घर से बाहर रहना...
एकबार फिर से वह बस ठगी सी खडी रह गई.
मौलिक और अप्रकाशित
कथानक में चलते चलते उत्सुकता बढ़ जाती है की आगे क्या होगा रूपा की हालत एसी क्यूँ हुई क्या उसने आत्महत्या की कोशिश की मगर क्यूँ ? इस पर थोडा और स्पष्ट हो जाता तो लघु कथा की रंगत कुछ और होती |
बहुत बहुत बधाई आपको आअद० नयना जी |
मुहतर्मा नैना आरती साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती
सुंदर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ----
नायिका के ससुराल में महिलाओं के साथ चले आ रहे कुछ दुर्व्यवहार कि तरफ आपकी कथा का इंगित है जिसे रूपा भाभी अपने अंतिम समय में नायिका को बताना चाह रही है .... इसका थोडा सा खुलासा परोक्ष रूप में कथा के मध्य में कहीं हो जाता तो रचना का प्रभाव दोगुना हो जाता .. हार्दिक बधाई इस कथा के लिए आदरणीया नयना जी
पांच वर्ष से देवर भाभी अबोला किये बैठी थी और अब भाभी की तबियत बिगड़ना ऐसी घटना की ओर इशारा कर रहे है जो बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है और जिसका निदान केवल सामाजिक परिवेश में सुधार से ही सम्भव है | सुंदर लघु कथा
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी।लघुकथा कुछ अधूरापन सा लिये हुए लगती है।शायद पोस्ट करने की जल्दी में कुछ प्रसंग छूट गया।चलिये, भागीदारी के लिये बधाई।
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