आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय विभा रानी जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
अपराध की सज़ा
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पंचायत घर में, लोगों ने एकत्र होना शुरू कर दिया, कुछ ही समय बाद मोतबर लोग भी वहाँ आ गए। भीड़ में जो धीमी आवाज से बातचीत चल रही थी, तब कुछ थम गई.थी जब सरपंच ने बंता से पूछा"
“बंता बता, क्या बात हुई थी ?”.
"अब मैं क्या बताउं? सारी दुनिया जानती है” बंता ने कहा।
"हाँ, पंचायत ने भी सुना है कि जीता तेरी घर वाली को भगा कर ले गया है "।
"पंचायत के आगे बात तो रखनी चाहिएI" पास बैठे बिल्लू पंच ने कहा ।
“कैसे कहें तुम हमारे हो, और हमारा ही पंचायत के आगे मज़ाक बना रहे हो” ।
“बन्ते की घर वाली अब पंचायत के पास है” सरपंच ने कहा ।
“जीते की बहू को भी हम ने यहाँ बुला लिया है “।
“तो क्या निर्णय किया है फिर पंचायत ने?“ नंबरदार ने पूछा ।
"निर्णय ये हुआ है", थोड़ी देर चुप रहने के बाद सरपंच फिर बोला।
“अब छोड़िये जो हो गया, परंपरा के अनुसार तो निर्णय यही कि अगर बंता की घर वाली जीता ले गया है, तो जीते की घरवाली बंते के घर रहे ”, सरपंच ने कहा ।
“ये कैसी परंपरा?” एक साथ दो आवाज़े भीड़ में गूंज गई, अपराध करने वाले को सज़ा देने की बजाय उनको सजा क्यों जिन का कोई अपराध नहीं न हो? ”
“हम नहीं मानते आपका निर्णय, हम लोगों को आप पे कोई विश्वास नहीं रहाI"और फिर दोनों आवाज़े भीड़ को चीरती हुई खुले आसमां के नीचे आ गई ।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
खाप पंचायतों के तानाशाही रवैये पर बहुत गहरी चोट की है आ० मोहन बेगोवाल जीI लघुकथा कामयाब है, हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
सर जी, मेरी कही लघुकथा आप को पसंद आई,शुक्रिया
बहुत सधी हुई सशक्त कथा , हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी
आदरनीया प्रतिभा बहन जी , शुक्रिया
आदरणीय आरफि जी, हौसला बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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