For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-35 (विषय: दिवास्वप्न)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-35 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गोष्ठी के पिछले 34 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव  में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-35
विषय: "दिवास्वप्न"
अवधि : 27-02-2018  से 28-02-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12191

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

शीर्षक बहुत पसंद आया | टी वी देखते देखते अक्सर बहस छिड़ जाती है | कश्मीर से पाकिस्तान लेना अथवा १९७१ की तरह सबक सिखाना ही यहाँ के लोगो का स्वप्न है | लाजवाब लघु कथा के लिए बधाई आदरणीय 

वाह! वाह!!  क्या कहने आली जनाब के । बहुत ख़ूब नज़रिया । क्या ख़ूब दूर की कौड़ी लाए हैं । बेहतरीन संवाद , कथानक में अथाह सस्पेंस । क्या कुछ नहीं समेट दिया आपने । मज़ा आ गया । बहुत-बहुत हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी । काफी प्रेरणा मिली ।

शौर्य के रंग में रँगी अद्भुत लघुकथा।

पड़ोसी किस तरह की सोच में हो सकते हैं। उसका बेहतरीन नमूना। 

लघुकथा को अपना कीमती समय देकर सराहने हेतु मेरे सभी आदरणीय मित्रों का हार्दिक धन्यवाद।

प्रस्‍तुत लघुकथा प्रदत्‍त विषय को जिस प्रभावशाली व सार्थक ढंग से परिभाषित कर रही है वह प्रशंसनीय है । अनुभवी दादा की , टी.वी. देखते पोते की भावभंगिमाएं और दादा के जवाब उसके बदलते हाव-भाव पूरी लघुकथा का सार बयां करने के लिए काफी है । लघुकथा का शीर्षक लघुकथा से भी उम्‍दा । एक आदर्श शीर्षक चयन जो पूरी अपने आप में पूरे इतिहास को प्रतिबिम्‍बित कर रहा है । 'घड़ी की सूईयां' दुबारा उस जगह वापिस अवश्‍य पहुंचती हैं जहां से वे चली हैं। / कश्मीरी भाईओं पर दिन रात जुल्म कर रही हैI" / यहां जुल्‍म के स्‍थान पर तश्‍दद और दादा जी को दादा जान करने से भाषा देशकालनुरूप बनती और लघुकथा के प्रभाव में बढ़ौतरी होती । सादर

हमेशा की तरह लाजवाब और बस लाजवाब कथा| हार्दिक बधाई सर |

जिस बात को समझकर भी नहीँ समझना चाहते लोग। उस बात को संवादत्मक शैली में आपने अपनी लघुकथा में पिरो दिया। कथा के अंत में दादा द्वारा पोते को कही बात बड़ी ही सटीकता से विषय को साकार करती है और पढ़ने वाले के मन पर कथा के परिपेक्ष में कहा गया वाक्य /लगता है अब बलूचिस्तान की बारी है/ चिरस्थायी हो जाता है। इस बेहतरीन और सामयिक लघुकथा के लिये अनुज की ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करे आदरणीय भाई जी।

आद0 योगराज भाई जी सादर अभिवादन। ग़ज़ज़्ब सोचते हैं आप। आपकी कल्पनाशीलता का जबाब नहीं। और उसको इतना बढिया उकेरते है कि क्या कहूँ। सिर्फ नमन नमन नमन नमन। सादर बधाई स्वीकार कीजिये

'हवाओं के वश में' (लघुकथा) :


बहुत दिनों बाद बेटे का फोन आया, तो बूढ़े पिता की ख़ुशी का ठिकाना न था। आज जी भर के बेटे से बात करने के इरादे के साथ बात करते हुए मोबाइल फोन लिए उनका हाथ कांप रहा था और ज़ुबां भी लड़खड़ा रही थी। बेटा कुछ ज़ल्दी में था।
" हां कहिए, क्या कहना चाहते हैं?"
" वो बेटा ... "
" हां, ज़ल्दी कहिए! टाइम नहीं है! अजीब से मैसिज क्यों भेजते हैं आप?"
"वो बेटा क्या है कि.... "
"डॉट.. डॉट...डॉट.. ब्लैंक मैसिज! तो कभी केवल क्वेश्चन मार्क वाला .. और कभी-कभी केवल एक्सक्लेमेशन (आश्चर्यबोधक) मार्क वाला मैसिज! क्या है पापा यह सब?"
"तुम कभी फोन नहीं उठाते... तो टीवी पर तुम्हारे राशिफल सुन कर कुछ कन्फर्म करने के लिए ..! बेटा आंखें कमज़ोर हैं, मोबाइल पर टाइपिंग नहीं कर पाता, सो इतना ही मैसिज कर देता था, शायद तुम हमारा इशारा समझ लो!" अबकी बार वे एक सांस में इतना कह गये थे। तभी बेटे के तेज़ स्वर सुनाई दिए :
"आप को पता है न मेरी नौकरी और बिज़ी लाइफ के बारे में! इस तरह के मैसिजिज़ से मैं कितने टेंशन में आ जाता हूं, कभी सोचा है आपने?"
"मैं और तुम्हारी बीमार मां तुमसे ज़्यादा टेंशन में रहते हैं! फुरसत हैं न!"
"आप लोग अपना ख़्याल रखें! मेरी फिक्र न करें! अगली बार कुछ ज़्यादा पैसे भेज दूंगा!" इतना कहकर बेटे ने फोन काट दिया।
"मां-बाप को तुम्हारे पैसों के मोहताज़ नहीं हैं! " बड़बड़ाते हुए उन्होंने अपना सादा मोबाइल टेबल पर रखा और पत्नि के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले -"बेटा मज़े में है! तुम उसकी और उसकी शादी की फ़िक्र मत करो! नई हवाओं का असर है!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,प्रदत्त विषय से पूर्ण न्याय करती लाजवाब लघुकथा,कथानक,संवाद,शिल्प,प्रवाह हर लिहाज़ से एक मुकम्मल लघुकथा,मुझे बेहद पसंद आई,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

13वीं पंक्ति में 'फुरसत हैं न' की जगह "फ़ुर्सती हैं न'

15वीं पंक्ति में 'माँ बाप  को तुम्हारे पैसों के मोहताज नहीं हैं'

"माँ बाप तुम्हारे पैसों के मुहताज नहीं हैं" कर लें ।

विषयांतर्गत मैंने तीन लघुकथाएं तैयार कर रखीं थीं। सुबह बस यह फाइनल करना था कि माहौल के अनुसार प्रयोगात्मक वाली पोस्ट करूं या पूरी तरह अपनी मौलिक व अप्रकाशित में से कोई एक!

 इस रचना पर आपकी पहली प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुआ। वाक्य संरचनाओं संबंधित आपके सुझावों अनुसार परिवर्तन कर दूंगा। मुझे उर्दू नहीं आती। थोड़ी बहुत पढ़ लेता हूं। उर्दू सीखना दिवास्वप्न ही रहा। सुझावों और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।

उर्दू सीखना दिवास्वप्न नहीं है,आप प्रयास करें तो आज भी सीख सकते हैं ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service