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ये बिलकुल सच्च है , लोग उनको लंगर खिलाते जिनको जरूरत भी नहीं होती , और ये भी सचाई है कि जिस मकसद को ले कर संस्था बनती , अक्सर कोई दूसरा ही काम करती है , आप की लघुकथा ने ठीक जगह चोट किया
बहुत सुन्दर बात कही आपने लघुकथा के माध्यम से आ. विनोद खनगवाल जी। लेकिन आजकल संस्थाएं ्सेवा कम व अपनी कमाई ज्यादा कर रही हैं फंड इकट्ठा करने के नाम पर। बधाई सुन्दर कथा के लिए।
//हमें बच्चों की बुनियाद पक्की करनी है या अपनी?//
गज़ब की मारक क्षमता है इस लघुकथा में, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनोद जी.
विषय -बुनियाद
"लगता है ,रमेश आज फिर दारू पीकर बहु से मार पीट कर रहा है "-बहु की चीख सुनकर बूढ़े पिता ने अपनी पत्नी से कहा |
"पता नही कहाँ से सीखी ऐसी एब "
"सीखना क्या है ,इसकी तो उसी दिन बुनियाद पड़ गयी थी ,जब आप ने मुझे पे हाथ उठाया था " -बूढी माँ ने गहरी साँस लेकर कहा |
"मौलिक व अप्रकाशित "
बहुत खूब भाई महर्षि त्रिपाठी जी. लघुकथा में लघुता के इलावा "कथा" एवं "कथा तत्व" का होना भी आवश्यक होता है. बहरहाल प्रतिभागिता हेतु बधाई स्वीकारें.
आ. योगराज प्रभाकर सर जी ,,,क्या कथा और कथा तत्व में कुछ कमी रह गयी ,कृपया विस्तार से बतायें ...ये मेरी कोशिश है |
आ. kanta roy जी ,रचना की सराहना हेतु,,बहुत बहुत शक्रिया |
आदरणीय महर्षि भाई जी, कथानक शानदार है इसमें थोड़े से कथातत्व की आवश्यता है तो ये शानदार लघुकथा बन जायेगी. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई ...और चलते चलते की सहभागिता हेतु विशेष बधाई
बहुत खूब, मतलब खानदानी गुंडई ....बढ़िया है महर्षि जी, बधाई.
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