आदरणीय साथिओ,
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समसायिक राजनीति पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीय मनन कुमार सिंह जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आभार आदरणीय महेंद्र जी।
वर्तमान राजनीति पर तीखा करारा व्यंग्य प्रस्तुत करती लघुकथा ।बधाई स्वीकार करें मनन कुमार सिंह जी।
आपका आभार।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
किसी के अरमानों की चीख़ का उत्सव ऐसा ही होता है।व्यंग्यपूर्ण कथा के लिये बधाई आद० मनन कुमार सिंह जी
जनाब मनन कुमार साहिब, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई
करारा व्यंग्य करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय मनन सरजी ।
निर्णय
देश की सरहद पर अचानक दुश्मनों द्वारा हमला किए जाने के कारण छुट्टी पर गए सैनिकों तुरंत पोस्ट पर हाजिर होने के आदेश प्रेषित कर दिये गए.
सायरन की आवाज सुनते ही सभी सैनिक अपनी ड्यूटी स्थल पर प्रस्थान कर गए, चारों ओर अरफा- तरफ़ी मची हुई थी,दिल दहला देने वाली गोला बारूदों की आवाजे आसमान को फाड़े जा रही थी. घायल सैनिको को उपचार के लिए कैंप की ओर ले जाया जा रहा था और शहीद हुये सैनिको को राजकीय सम्मान के साथ राष्ट्रीय झंडे मे लपेट कर घर पहुचाने की व्यवस्था की जा रही थी ,साथ ही सरकार की ओर से शहीदों के परिवार के लिए राहत राशि की घोषणा की गई.
टेलीवीजन पर चल रहे समाचार को देख नलिनी को पुरानी यादों मे खड़ा कर दिया. वो, तिवारी जी के पड़ोस मे अपने फौजी पति,धीरज के साथ रहती थी. मिश्रा जी का बेटा धीरज फौज मे था,वो भी आदेश मिलते ही सरहद पर देश की रक्षा के लिए अपनी पत्नी नलिनी और दूध मुंही बच्ची पीहू को ,मुझसे देख-रेख की कह कर चला गया था. धीरज ने अपनी मर्जी की शादी करने पर,उसके घर वालों ने अपने से बेदखल कर दिया था.
आज तड़के सुबह सरकारी आदमी द्वारा तार नलिनी को दिया,तो उसके पढ़ते ही वही चक्कर खाकर गिर पड़ी. धीरज के शहीद होने की खबर हवा की तरह पूरे गाँव में फ़ेल गई और पता लगते ही धीरज और नलिनी के माँ-बापू भी सब कुछ भूलकर एक पैर पर दौड़े चले आए.
पूरे राजकीय सम्मान के साथ धीरज का अंतिम संस्कार किया गया।तत्पश्चात नलिनी के पिताजी ,उसके पिताजी के सामने आग्रह पूर्वक कह रहे थे,-‘नहीं हो तो कुछ दिनों के लिए मैं अपनी बेटी को घर ले जाना चाहता हूँ’.’
‘अरे आप कैसी बातें करते हैं !वो हमारी बहूँ हैं. नातिनी हमारे घर की रौनक हैं,वो काही नहीं जाएगी.’
‘लेकिन साहब,दोनों अकेली कैसे रहेगी ?वहा भैया-भाभी हैं,मन लगा रहेगा.’
‘वाह !साहब जी आपने अपना सोचा. हमारी बिटिया कुछ दिनों बाद ससुराल चली जाएगी. फिर हम बुड्डे – बुड्डी को कौन सहारा हैं.’
दरवाजे के पीछे खड़ी दोनों का अचानक से उत्पन्न असीम स्नेह को देख सोच रही थी,अनायास ये नफरत मे प्यार का गुड़ कैसे समा गया ?अपनी खीचा-तानी सुन उसका सब्र टूट गया और सामने आकर किसी के साथ ना जाने का मन जता दिया .
‘पर ,बेटी,क्या हम तुम्हारे कोई नही हैं ?’नलिनी के पिताजी ने याचना भरे लहजे मे कहा.
‘उस दिन आपका ये अधिकार कहा चला गया था,जब ससुराल से ठुकराने के बाद मैं,आपके पास आई थी.जब आपने ससुराल ही तेरा घर हैं,कहकर मुंह छिपा लिया था.’
अपने श्वसुर की तरफ मुतालिब होकर बोली, ‘और पिताजी आपने तो कलंकिनी कहा था,आज कैसे गृहलक्ष्मी बन गई?’
दोनों नलिनी की बात सुन,सिर झुका,आगा-पीछा सब भूलकर ,साथ चलने का आग्रह करने लगे. बात पूरी सुने बिना नलिनी तपाक से बोली, ‘कही यह मोह सरकार के दान ने तो नहीं जाग्रत कर दिया ?’
दोनों अपने मन के चोर पकड़े जाने पर ,लड़खड़ाती जुवान से कहने लगे, ‘कैसी बात करती हो?हम तो तुम्हारे अपने...........’
‘मुझे किसी की जरूरत नही,ज़िंदगी की सच्चाई का पाठ सीख लिया हैं,खुद निर्वाह कर लूँगी।’ अपना अंतिम निर्णय सुना अंदर चली गई.
विचारों मे खोई नलिनी की तंद्रा पीहू की आवाज ने तोड़ी,नजर उठा कर देखा,तो मिलिट्री की ड्रेस पहने पीहू खड़ी मुस्करा रही थी,उसमे धीरज की परछाई..देख आंखे एसजेएल हो गई,उसे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नही,फक्र था.
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। सरकारी दान पर अवसरवादी पिता और ससुरजी के बदलते तेवर और बिटिया में पति की छवि देखती आशांवित और आत्मविश्वासी नलिनी के माध्यम से पीड़ित सैनिक विधवाओं, बेटियों और बहुओं सबको प्रेरणा और सबक़ देती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा। वैसे रचना के उत्तरार्ध भाग में ही लघुकथा का अस्तित्व है। शेष भाग के केवल अनिवार्य विवरण का सार कहीं समायोजित किया जा सकता है मेरे विचार से। सादर।
आभार शेख सरजी ।
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