आदरणीय साथिओ,
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मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा, शानदार लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मोहतरम तस्दीक साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत भावपूर्ण और बढ़िया रचना, बड़े लोगों के दिल अक्सर बहुत छोटे होते हैं. बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिए आ राजेश कुमारी जी
मार्मिक संवेदनशील रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया राजेश सरजी ।
लघुकथा ------------ नया इन्कलाब ------------------ आजकल भेड़ों में जागृति की हवा में सांस लेने का नया शौक चल पड़ा था। सभी भेड़ें इकट्ठा होकर अपने भविष्य की जागृति के लिए चिंतित अपने अपने मत प्रकट करने के लिए मीटिंग कर रहीं थीं। जो कि उनकी फितरत के लिए एक नया इन्कलाब था। "पर यह तो हमारा धर्म नहीं है, हमें अपने गडेरिए के दिखाए रास्ते पर ही चलना चाहिए।" "हां जी, हमारी बुजुर्ग भेड़ जिधर चलेगी हम भी उधर ही तो चलेंगी।" "वे हमेशा हमारा भला करती रही हैं।" "हमें भरपेट घास मिल जाए और क्या चाहिए।ये पेट कभी भरता ही नहीं है।" "वह नया गडेरिया कहता है हमें नरम और ताजा घास खिलाएगा।" "ऐसे रास्ते पर चराने ले जाएगा जो पहाड़ी की तलहटी में है।" " जहां की पहाड़ी से रास्ता सीधे स्वर्ग की ओर जाता है।" "वहां ठंडी हवा भी मिलेगी, क्योंकि केवल खाना ही नहीं प्रकृति की अन्य सुविधाओं पर भी हमारा हक है।" "हम हरियाली के रस्ते वालों के साथ जाएंगी" "हमारा गडेरिया फूलों की घाटी से ले जाएगा।" " ठीक हैजी जिसका जिधर मन हो जाए।" बाहर खड़े गडेरिए भेड़ों को जितना हो सके अपने दल की रेवड़ में हांक ले गए। आगे गडेरिए पीछे भेड़चाल में रेवड़। उस शाम गडेरियों ने भेड़ों के मांस की शानदार दावत की। आखिरकार कटना भी उनकी फितरत थी और उसमें कोई नया इन्कलाब नहीं आया था।
मौलिक व अप्रकाशित
सुंदर रचना कनक जी, भेड़ों और गडरिये के प्रतीकात्मक शब्दों को आपने बखूबी प्रयोग किया. रचना में वर्णित किये गये वाक्य रचना को प्रभावी बनाते है, बधाई आदरणीया
आदरणीया कनक हरलालका जी, आपकी लघुकथा पढ़कर मुझे अपनी कविता "पहली भेड़" की याद आ गयी. कुछ इसी तरह की बात (वहाँ हमें बाड़े में बंद मुर्गियों का उदाहरण मिलता है) रसल ने भी की है. इस बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //आजकल भेड़ों में जागृति की हवा में सांस लेने का नया शौक चल पड़ा था।// यहाँ 'शौक' शब्द कुछ खल रहा है.
2. //उनकी फितरत के लिए एक नया इन्कलाब था।// इस वाक्यांश 'फितरत के लिए एक नया इन्कलाब' को एक बार पुनः देख लें.
सादर.
मुहतरमा कनक साहिबा, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
जनाब कनक जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का जी।
आदरणीय अतुल जी , सुंदर लघुकथा के लिए मुबारकबाद कुबूल करें
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