For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 53

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 53 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा--सुखन मीर तकी 'मीर' ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"कुछ अजब तौर की कहानी थी"

२१२२-१२१२-२२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
रदीफ़ :- थी 
काफिया :-आनी (पुरानी, निशानी, जवानी आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11120

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

  आदरनीय दिलबाग जी,आप जी की गजल अपने में बहुत सुंदर विचार संभाले  हुए है

बढ़िया और खुबसूरत ग़ज़ल 

क्या खूब कहा है -

सीख लेते अगर इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी थी ।

सीख लेते अगर इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी थी ।----वाह  ! क्या  बात है | उम्दा  भाव 

मारना सीखते अहम् अपना
' विर्क ' दीवार जो गिरानी थी ।- बहुत  खूब 


सीख लेते अगर इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी थी ।

मारना सीखते अहम् अपना
' विर्क ' दीवार जो गिरानी थी ।

बहुत खूब आदरणीय विर्क जी 

आदरणीय दिलबाग जी इस गजल के लिए बह्दाई स्वीकार करें....

हार्दिक बधाई स्वीकारें इस शानदार प्रस्तुती के  िलए आ. दिलबाग जी ! 

इसलिए हार हमने मानी थी, 
जो मुसीबत थी, आसमानी थी.
.

कुछ तो तूफ़ान ने भी ठानी थी,
उस पे कश्ती भी बादबानी थी.
.

हर कहानी में इक कहानी थी 
हय! जवानी भी क्या जवानी थी.
.

मीर की शायरी सयानी थी,
‘कुछ अजब तौर की कहानी थी

.

रात ख़्वाबो में कौन आया था,
सुब’ह साँसों में रातरानी थी.   
.  

पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,
हाथ में डायरी पुरानी थी. 
.

दिल में मेरे ठहर गया सहरा,
पहले दरियाओं सी रवानी थी.
.

रो पड़ा हँसते हँसते महफ़िल में,   
चोट दिल पर कोई पुरानी थी.   
.
निलेश "नूर"

मीर की शायरी सयानी थी,
‘कुछ अजब तौर की कहानी थी-----शानदार गिरह 


.
पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,

हाथ में डायरी पुरानी थी. ---वाह बहुत शानदार 
.बढ़िया ग़ज़ल हुई है नीलेश जी दाद कबूलें 

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी 

//इसलिए हार हमने मानी थी,
जो मुसीबत थी, आसमानी थी.// वाह वाह - सुन्दर मतला। ("मानी" और "आसमानी" में "मा" की बंदिश आखिर तक निभानी पड़ेगी हुज़ूर)

//कुछ तो तूफ़ान ने भी ठानी थी,
उस पे कश्ती भी बादबानी थी./// हुस्न-ए-मतला भी लाजवाब हुआ है।   

//हर कहानी में इक कहानी थी
हय! जवानी भी क्या जवानी थी.// वाह वाह वाह  क्या शेरियत है।
.
//मीर की शायरी सयानी थी,
‘कुछ अजब तौर की कहानी थी” // गिरह भी बाकमाल है।
.
//रात ख़्वाबो में कौन आया था,
सुब’ह साँसों में रातरानी थी. // बहुत मुलायमियत है इस शेअर में -वाह।
.  
//पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,
हाथ में डायरी पुरानी थी. // क्या कहने हैं, हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर  
.
//दिल में मेरे ठहर गया सहरा,
पहले दरियाओं सी रवानी थी.// बहुत खूब
.
रो पड़ा हँसते हँसते महफ़िल में,   
चोट दिल पर कोई पुरानी थी.// बहुत खूब 

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक 
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक .....सहर होने तक ....
मानी और आसमानी का मानी दोनों अलग और मूल हैं अत: मानी की बंदिश नहीं रहेगी शायद ,,
सादर 

पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,
हाथ में डायरी पुरानी थी. ..

वाह निलेश जी इस एक शेर ने पूरा मुशायरा लूट लिए ....

पूरी ग़ज़ल लाजवाब ...

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service