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जिन अनुभूतियों से मुझे साहस मिलता है उनमे से मेरी कथा में आपकी उपस्थिति की अनुभूति अग्रिम पंक्ति पर सदैव रहेगी | बहुत आभार आ. दिदिया !
आपको खूब पढ़ा है मैंने और आपकी कलमकारी से बखूबी वाकिफ हूँ |अल्फाजों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का फर्ज आप बखूबी निभाते है | जर्रा-नवाजी के लिए शुक्रिया ! सलाम अर्ज कर रहा हूँ जनाब शेख शाहजाद उस्मानी !
हार्दिक बधाई आदरणीय सुधीर जी!अच्छी लघुकथा हुई है!मनुष्य की अंतरात्मा एक दिन उसे इसी तरह झकझोरती है जब वह मनुष्य के कर्मों से गले तक डूब जाती है!तब उसकी उकताहट मनुष्य की नींद और चैन सब छीन लेती है!
आदरणीय सुधीर दिवेदी जी बड़े कुशल लेखन से आपने एक व्यक्ति को अपने जमीर से साक्षातार करते हुए दर्शाया हैं सादर बधाई आपको शशक्त रचना के लिए
यही जमीर ही तो हैं जो कलयुग होते हुए भी अपना दबदबा बनाये हुए हैं | यदि इसी तरह जमीर सबके जग जाये वह भी समय रहते तो क्या बात रहें ..बहुत -बहुत बधाई आपको सुधीर भाई ...बहुत खूब कथा कही आपने
बहुत ही प्रभावी प्रस्तुतीकरण है भाई सुधीर जी, गाइड फिल्म का क्लाइमेक्स याद आ गया | इस सुगठित और सधी हुई लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करें|
अपने ज़मीर का सामना ही तो नहीं कर पाता इंसान, किन्तु वह उसे कचोटता ज़रूर है व अंदर तक हिला कर रख देता है। सुन्दर लघुकथा आ. सुधीर जी, बधाई आपको
आदरणीय सुधीर जी, आपकी लघुकथा कई अर्थों में तोषकारी रचना है. ’नाटकीयता’ इस अवयव का संयत और सटीक प्रयोग देख कर मन झूम उठा है. एक सफल प्रस्तुति हुई है. आपके प्रयास केलिए हार्दिक साधुवाद !
प्रत्युत्तर (लघु कथा)
"गाइड की पांच साल की नौकरी में मैंने ऐसा बड़बोला विदेशी गोरा पर्यटक नहीं देखा! जब देखो अपने पश्चिम की बड़ाई और हमारे देश की बुराई! तुम्हारे देश में इतना गंदगी क्यों हैं, छोटे छोटे बच्चे हमारे पैर पकड़कर भीख क्यों मांग रहे हैं, इतना गरीबी क्यों हैं वगैहरा वगैहरा! अभी इसे कुम्हार बस्ती ले जा रहा हूँ पता नहीं वहां क्या बोलेगा" अपने आप से बड़बड़ाता हुआ गाइड आनंद बोल पड़ा! कुम्हार बस्ती पहुँचते ही गोरे पर्यटक की आँखों में चमक आ गयी! पूरी बस्ती मिटटी के खिलोनो, भगवान की मूर्तियों से अटी पड़ी थी! एक कुम्हार भगवान की प्रतिमूर्ति बना रहा था!
" मिस्टर गाइड एक बात बताओ तुम हिन्दू इन मिटटी के भगवान की पूजा करता फिर इन्हे ही नदी में डालता इनको नष्ट करता ये कितना फनी(मजाकिया) लगता!" व्यंगात्मक लहजे में वो गोरा पर्यटक बोला!
गाइड आनंद के कुछ बोलने से पहले ही मूर्ति बनाता कुम्हार बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा " वो साहब हम ऐसा इसलिए करते हैं की सबको ये याद रहे ये दुनिया एक दिन छोड़नी हैं धरती पर जो आएगा वो एक दिन जरूर जाएगा फिर चाहे वो देवता ही क्यों ना हो! सारा संसार ही मिटटी है!" कुम्हार के इस उत्तर का गोरे पर्यटक के पास अब कोई प्रत्युत्तर ना था!
मौलिक व अप्रकाशित
बहुत बढ़िया मर्म है कथा का ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीया रजनी जी
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