परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 72 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब क़तील शिफाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"
मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन
221 2121 1221 212
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जून शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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//रोपूँ कहाँ पे तुलसी के बिरवे बताइये ?
आँगन का कोना-कोना तो काँटों से पट गया//
वाह वाह, बहुत खूबसूरत शेअर हुआ हैI तीसरे शेअर में तक़ाबुल-ए-रदीफैन का दोष आ गया है, उसे देख लेंI इस प्रस्तुति हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
दमदार हुई ग़ज़ल। वाह।
टोपी पलट गयी है तुझे देखने में दोस्त
ऊँचा उठा है तू या मेरा कद ही घट गया
विशेषकर खूबसूरत शेर हुआ।
आ० सुलभ जी, बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई.!!
सादर !!
टोपी पलट गयी है तुझे देखने में दोस्त
ऊँचा उठा है तू या मेरा कद ही घट गया ?...वाह ! बहुत खूब आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री साहब.सादर.
मुजरिम हुआ ज़नाब वफ़ा से पलट गया,
बनके घटा सा आया वो बादल कि छट गया |
गुज़रा कभी जो साथ समां भूलूं कैसे मैं,
बरसों में इक था यार मिला पल में कट गया |
अब शोर है बहुत कि जहाँ से उठा रकीब,
कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया |
नफरत व रंजिशे भी बता क्या बिगाडेंगी,
दिल में था इतना प्यार कि दुश्मन उलट गया |
सरहद पे सैनिकों ने मनाया था जब ज़शन,
जो भी जिसे दिखा वो वहीँ पर लिपट गया |
.
मौलिक व अप्रकाशित
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० हर्ष महाजन जी ,हार्दिक बधाई
बनके घटा सी आया ---घटा स्त्रीलिंग है
शुक्रिया आ० राजेश कुमारी जी --आपने सही कहा --बहुत बहुत धन्यवाद् सुधार करने के लिए.....थोडा सुधार करने की कोशिश की है |
मुजरिम हुआ ज़नाब वफ़ा से पलट गया,
बनके घटा सी आया वो बादल कि छट गया |
सादर !!
आ० Sheikh Shahzad Usmani जी आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए हार्दिक आभार !! सर आगे से ज़रूर ध्यान रखूँगा |
आदरणीय हर्ष जी इस प्रयास पर बहुत बहुत बधाई. सादर
आ० मिथिलेश वामनकर जी आपकी उपस्तिथि और हौसिला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
सादर !!
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