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हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जी!!बहुत सुंदर लघुकथा !ताऊ को उसीके मौहरों से शह और मात दे दी!
अनकही का असर समझ आ रहा है|उम्दा कथा ,हार्दिक बधाई
कथा का शिल्प ,प्रस्तुतीकरण बहुत बढ़िया है ,अंत कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया कि कौनसे पाप की बात हो रही है कथा पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय पंकज जी
आज कल बच्चों को भी कम मत समझो वैसे भी भतीजा तो उसी का है ताऊ की हर चाल से वाकिफ है बहुत शानदार प्रस्तुति करण बस अंत ने ही कुछ उलझा दिया जो शायद आपने पाठकों को तरह तरह के कयास लगाने को छोड़ दिया.
हार्दिक बधाई आपको इस सुन्दर लघु कथा के लिए आ० पंकज जी
उत्तम कथा पंकज जोशी जी
आदरणीय पंकज भाई सीधे दिल में उतर गई आपकी लघुकथा । बहुत खूब । जिस प्रभावशाली ढंग से आपने प्रदत्त विषय को छुआ है वह अत्यंत प्रशंसनीय है। मेरी व्यक्ितगत राय से /ले बचा अपना राजा यह शह और यह मात/ इस स्टीक कथा में अनावश्यक शब्द हैं। यह शब्द कथा में न होकर शीर्षक में होने चाहिए थे। इस शीर्षक विहीन कथा का शीर्षक 'शह और मात' होना चाहिए था। आपको इस कथा हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
मुझे ये लघुकथा का अंदाज ए बयान भा गया आदरणीय पंकज जी ,हाँ ,जरा कथा में प्रयुक्त "पाप " का एक इशारे की जरुरत तो थी ,लेकिन फिर भी लघुकथा जानदार है। बधाई
!
बहुत बहुत बधाई आपको pankaj जी इस लघुकथा के लिए
इस विशिष्ट कथा केलिए हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जोशीजी. जिस महीनी से तथ्य को उभारा गया है वह दंग भी कर रहा है, तो आपकी रचनाधर्मिता के प्रति आश्वस्त भी कर रहा है. ताऊ और भतीजे के बीच हुआ यह संवाद सामाजिक पारिवारिक विसंगतियों का ज्वलंत उदाहरण है. कथ्य से सशक्त और शिल्प से समृद्ध इस लघुकथा केलिए शुभकामनाएँ
//कथ्य से सशक्त और शिल्प से समृद्ध //
एक बहुत बढ़िया प्रस्तुति को समीक्षा के बहुत बढ़िया शब्द मिले है आभार
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