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आदरणीया विजय जोशी जी प्रस्तुति को सशक्त करती आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
शतरंज की बाज़ी(लघुकथा)
पार्क में कुछ दिनों से कुछ बदला बदला सा लग रहा था, पहले लोग एक साथ बैठ कई तरह की घर बाहर व् राजनीती की बातें करते कभी कभी बीच मे कहकहा लगाते थे| मगर जिस दिन से सुरिंदर इंग्लैंड से आया था, हर तरफ तब्दीली नज़र आने लगी थी, इस का एक बड़ा कारण अब लोगों का सुरिंदर की तरफ़ बदला हुआ नज़रिए था |
पहले जब वह यहाँ आता था तो लोग उस की बातें बड़े ध्यान से सुनते थे,और लोगों का का ताँता उस के घर में लगा रहता था |
मगर इस बार उसको खुद भी लग रहा था जैसे लोगों में उस कि लिए वो स्नेह प्यार नहीं रहा जो पहले हुआ करता था |
उसे लोगों को नए चुने प्रधान की तरफ झुकाव ज्यादा नज़र आया | ज्यादातर लोगों का विचार था के एक तो नए प्रधान का बात चीत का सलीका बहुत अच्छा है और दूसरा वह सांझें कामों में दिलचस्पी भी खूब लेता है | इस के साथ साथ एक और बात जो अब के दौर में अति जरूरी है, वो था उसका लोकल लीडर के के साथ उठना बैठना जो उस कि संझें कामों को निकालने कि जरूरी भी हो गया था |
जब उसे ये उसे यकीन हो गया कि लोग उस की ज्यादा परवाह नहीं करते तो उसने अपने पुराने हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए, | उसने ऐसी बातें करनी शुरू कर दी कि लोग उस से मिलने से कतराने लगे ,क्यूंकि वह जब भी किसी से मिलता एवनीयुं में हुए कामों की में गलतियाँ निकाल कर उस पे नुक्ताचीनी शुरू कर देता|
यहाँ से जाने से पहले वह भी कुछ वर्षों तक इस एवनियुं का प्रधान रहा, मगर उसका मुख्य काम लोगों के लिए समस्या पैदा करना व् बाद उन समस्याओं को सुलझाने के लिए विचोल्गी करना, जिस के लिए उस ने कुछ रखे थे प्यादे जो उस के बारे में लोगों में प्रचार करते रहते थे , जिस से लोगों को अपनी तरफ किया जा सके |
यहीं काम उस ने उस दिन भी करने की कोशिश की थी जब दो हमसाये लोगों में किसी कारन अनबन हो गई | पार्क में आपसी समझोते के लिए बातचीत चल रही थी|
तब सुरिंदर ने अपने एक साथी से कहा "समझोते ऐसे कहाँ होते हैं, प्रधान को तो एक तरफ़ा फैसला कर देना चाहिए, प्रधान का काम ये तो नहीं कि वो लोगों की बात के आगे झुक जाए, उसे तो फैसला सुना देना चाहिए एक धिर ने तो नाराज़ होना होता है |" ये सुन कर वहां बैठे लोगों में से एक ने कहा "ऐसा थोड़ा होता है, दूसरे लोगों की बात भी हमें सुननी चाहिए और उसे भी अपने फैसले से संतुष्ट करना चाहिए | ये बात सुन कुछ और लोग भी उस से किनारा करने लगे,प्रधान भी इस समय दौरान चुप ही रहा, उस की चुप ने धीरे धीरे सुरिंदर के सभी प्यादे हार चूका था | और आखर वो खुद को भी चारे खाने चित्त हुआ महसूस करने लगा | अगले दिन वह पार्क के एक कोने में अकेला बैठा खुद को इंग्लैंड में किसी पार्क में जैसा महसूस कर रहा था, और उसे लगा कि जैसे वह अपनों के साथ खेली शतरंज की बाज़ी हार चूका हो |
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
अच्छी लघुकथा है आ० मोहन बेगोवाल जी, बधाई स्वीकारें.
आदरणीय आयोजन में प्रस्तुति हेतु बधाई आपको
अगले दिन वह पार्क के एक कोने में अकेला बैठा खुद को इंग्लैंड में किसी पार्क में जैसा महसूस कर रहा था, और उसे लगा कि जैसे वह अपनों के साथ खेली शतरंज की बाज़ी हार चूका हो //बहुत बढ़िया कथा रची है आपने आदरणीय ,बधाई आपको इस रचना पर
"
आदरणीय मोहनजी, आपकी प्रस्तुति इस आयोजन में विशिष्ट है. आपकी सतत कोशिशों का प्रतिफल हम सभी को लाभान्वित करेगा.
सादर धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, प्रदत्त विषय अनुरूप बढ़िया प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई. प्रस्तुति पर पुनः वापिस आता हूँ सादर
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