परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 81वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद मुश्ताक़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
" जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं "
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 2122 212
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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:-))))))))) बात तो सही है यहाँ गुलशन सिर्फ एक बार महकता है
मोहतरम गुलशन खैराबादी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है अंतिम दो शेर आज के दौर के खूब हुए बहुत बहुत बधाई आपको
खूबसूरत गजल हुयी है आदरणीय अशफाक़ भाई
"आरज़ू थी उनको खत लिखूं मगर वो आ गए"
इस लाइन को शायद और देखने की ज़रूरत है .....
वाह ग़ज़ल अच्छी लगी बधाई ...............आधुनिक जीवन शैली को शामिल करना अच्छा लगा ,,,,,,,,,,,,
जनाब अशफाक अली साहब ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद कबूल फरमाएं|
मुहतरम जनाब अशफ़ाक़ गुलशन साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
शेर 9 के सानी मिसरे में शब्द '' सियानी '' शायद सही है सयानी नहीं ---
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