परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....
"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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आप सभी का स्वागत है ।
आपका इस्तकबाल करते हम भी आनन्द में हैं .. :-))))
जय होऽऽऽऽ
जय हो , जय ओ बी ओ
आदरणीय मंच संचालक महोदय,
एक निवेदन है, यदि कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ भी हर ग़ज़ल के नीचे लिख दिए जाए,तो ग़ज़ल समझने में आसानी होगी, नहीं तो मुझ जैसे सामान्य पाठक तो कुछ का कुछ और ही अर्थ समझ बैठेंगे . सादर.
आपकी अपेक्षा और तदनुरूप अनुरोध में मंच के सभी पाठकों का स्वर मुखरित है, डॉ.प्राची. लेकिन इसी के समानान्तर एक बात और है, कि कठिन शब्द सदा ही सापेक्ष हुआ करते हैं. जो शब्द अर्थ के संदर्भ में आपको सरल लगते हैं, वही मुझे कठिन लग सकते हैं. किन्तु, रचना में प्रयुक्त अप्रचलित या आंचलिक शब्दों के मायने तो रचनाकार दे ही सकते हैं, ताकि रचना की पहुँच बढ़ जाय.
हमसब का यह प्रयास रहता है कि रचना में प्रयुक्त कम प्रचलित या आंचलिक शब्दों के मायने यथासंभव दे दिया करें. हाँ, यह कभी-कभी होने से रह जाता है.
यक़ीनन आपकी बात सही है ......प्रयास करते हैं ....
हम जैसे सामान्य पाठक की भी यही अपेक्षा है.
dr prachi ji ki baat se sau feesdi etafaaq karta hoo ,,,exactly mera bhi yahi manna hai
हालिया दौर की विसंगतियों पर एक मुसलसल ग़ज़ल प्रस्तुत है.. सुधी पाठकों के विचारों का आकांक्षी
हर दरिन्दे के कयासों को ज़बर करती है
हाँ, निग़ाहों की असमता ही कहर करती है ॥१॥
खूब दावा कि उठा लेंगे ज़माना सिर पे
हौसला पस्त हुई बात मग़र करती है ॥२॥
मोमबत्ती लिए लोगों के जुलूसों में भी
दानवी भूख कई आँखों में घर करती है ॥३॥
ये कहाँ सच है कि रेतों में नमी ही दोषी
रेत सूखी भी रहे जान दुभर करती है ॥४॥
जो न मरती है न जीती है, सुनो, वो औरत
बेहया काठ सी बस उम्र गुज़र करती है ॥५॥
ज़र्द आँखों की ज़ुबां और कहो क्या सुनता
शर्म वो चीज़ है, ऐसे में असर करती है.. ॥६॥
हालिया दौर में बेटी के पिताओं की हर
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है ॥७॥
शह्र के ज़ब्त दरिन्दों में है वो शातिर भी
गाँव में एक, खुली माँग सँतर करती है ॥८॥
Waah waah Sir ji............
Mahaul ke hisaab se kahi ghazal............ Kya kahne........ har ek sher apne aap me bahut gahare mayane rakhta hai........... Badhai sweekar karen............
आपका अनुमोदन मुझे अपार संतोष दे रहा है, हरजीत सिंह जी. परस्पर सहयोग यों ही बना रहे.
सधन्यवाद
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