परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 33 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब अकबर इलाहाबादी की गज़ल से लिया गया है |
अवधि : 23 मार्च दिन शनिवार से दिनांक 25 मार्च दिन सोमवार तक
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य, प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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शब्दों का आज उसने खंजर बना के मारा
मैं शांत इक नदी थी, पत्थर उठा के मारा ,,,,Bagi ji ka Sujhav Kabil-e-tarif hai !! lally
आदरणीया राजेश कुमारीजी, वाह वाह ! क्या ग़ज़ल हुआ है .. उस्तादाना सोच ! बहुत खूब !
मतले से ही आपने माहौल बना लिया है. वैसे गणेश भाई की सलाह पर मैं मरा-मिटा जा रहा हूँ. क्या ग़ज़ब की बात कही है उन्होंने.
नाराज आशिकों में होती रही ये चर्चा
जिस रूप के दीवाने उसने जला के मारा .. .सानी के उसने को उसको किया जाय तो देखिये आपकी बात निखर कर आती है.. .
उसकी नहीं थी फितरत धोखे से वार करना
दुश्मन को सामने से उसने बता के मारा ... . ग़ज़ब ग़ज़ब ! क्या दिलेरी है ! दिल से दाद दे रहा हूँ.
इक पाक मुहब्बत का दुश्मन हुआ ज़माना
रब की दिवानी मीरा को विष पिला के मारा .. एक अच्छे शेर की कोशिश हुई है. आप इस शेर पर और समय दें, आदरणीया. अग्रिम बधाई.
गिरह के शेर और मक्ते के लिए दिल से शुभकामनाएँ और बधाई.. .
सादर
आदरणीय सौरभ जी आपकी ही कमी महसूस हो रही थी मुशायरे में आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को मान मिला आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार |
आदरणीया राजेशजी, हमने कारण बताया न.. . चलिये देर आये दुरुस्त आये.. :-))))))
अब हम हैं.. अपने हैं.. होली का माहौल है.. . बस होली है .. किया जाये .. :-)))
उसकी नहीं थी फितरत धोखे से वार करना
दुश्मन को सामने से उसने बता के मारा...सुन्दर रचना
बहुत-बहुत शुक्रिया अविनाश जी
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने आ. राजेश कुमारी जी !!!
इसको जहर से मारा उसको जला के मारा | " वाह ! वाह !!!
" समझा नहीं अभी तक क्या होती है आजादी
पिंजर में पंछियों को उसने सजा के मारा | " वाह.... इस शेर के तो क्या कहने.... लाजवाब !!!
आशीष नैथानी जी आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार|
निम्न शेर बेहद उम्दा लगे, हार्दिक बधाई राजेश कुमारी जी -
शब्दों का आज उसने खंजर बना के मारा
इक शांत सी नदी में पत्थर उठा के मारा - ये खंजर तो दिल पर गहरी चोट करते है |
विश्वास करके जिसका हमनें किया भरोसा
ए "राज" आज उसने नफरत दिखा के मारा- विश्वास घात से बढ़कर कोई दुश्मनी नहीं है |
आदरणीय लक्ष्मण जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह वर्धन करती है आपको दिल से आभार|
बहुत बहुत कसी हुयी ग़ज़ल राजेश जी सभी शेर बहुत ज़बरदस्त
शब्दों का आज उसने खंजर बना के मारा
इक शांत सी नदी में पत्थर उठा के मारा....... ...शायद इससे पैना खंज़र आज तक नहीं बना
उसकी नहीं थी फितरत धोखे से वार करना
दुश्मन को सामने से उसने बता के मारा......खूब
समझा नहीं अभी तक क्या होती है आजादी
पिंजर में पंछियों को उसने सजा के मारा...वाह क्या दिल को छू लेने वाली बात कही
हार्दिक बधाई एवं होली की शुभकामनाएं
प्रिय सीमा जी आपका ही इंतज़ार था मेरी ग़ज़ल को आपकी तारीफ मिली कलम को ताकत मिली और क्या चाहिए दिल से आभार आपका |
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