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इस बार बात थोड़ी कठिन हो गयी फिर भी जो प्रयास बन पड़ा प्रस्तुत है:
इधर इक शम्अ तो उस ओर परवाना भी होता था
नसीबे-इश्क में मिलना-ओ-मिट जाना भी होता था।
अरे साकी हिकारत से हमें तू देखता क्या है
हमारी ऑंख की ज़ुम्बिश पे मयखाना भी होता था।
समय के साथ ये सिक्का पुराना हो गया तो क्या
कभी दरबार में लोगों ये नज़राना भी होता था।
हमारे बीच का रिश्ता हुआ क्यूँ तल्ख अब इतना
कभी मेरी मुहब्ब्त में वो दीवाना भी होता था।
कभी जब याद करता हूँ तो मुझको याद आता है
हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।
भला क्यूँ भीड़ में इस शह्र की हम आ गये लोगों
मुहब्बत कम नहीं थी गॉंव में दाना भी होता था।
सुनाये क्या नया 'राही', ठहर कर कौन सुनता है
हमें जब लोग सुनते थे तो अफ़साना भी होता था।
//इधर इक शम्अ तो उस ओर परवाना भी होता था
नसीबे-इश्क में मिलना-ओ-मिट जाना भी होता था।//
यही तो सच है ज़माने का ........
//अरे साकी हिकारत से हमें तू देखता क्या है
हमारी ऑंख की ज़ुम्बिश पे मयखाना भी होता था।//
वाकई वो भी क्या दिन थे ........
//समय के साथ ये सिक्का पुराना हो गया तो क्या
कभी दरबार में लोगों ये नज़राना भी होता था।//
कभी क्या आज भी है ......बहुत खूबसूरत शेर ..
//हमारे बीच का रिश्ता हुआ क्यूँ तल्ख अब इतना
कभी मेरी मुहब्ब्त में वो दीवाना भी होता था।//
समय समय की बात है .........
//कभी जब याद करता हूँ तो मुझको याद आता है
हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।//
सही कहा भाई .........
//भला क्यूँ भीड़ में इस शह्र की हम आ गये लोगों
मुहब्बत कम नहीं थी गॉंव में दाना भी होता था।//
वह वह भाई क्या गज़ब की पंक्ति है यह .....मुहब्बत कम नहीं थी गॉंव में दाना भी होता था......
//सुनाये क्या नया 'राही', ठहर कर कौन सुनता है
हमें जब लोग सुनते थे तो अफ़साना भी होता था।//
जाने कहाँ गए वो दिन .........पर अभी भी तो वही हुनर है ...
बहुत खूबसूरत गज़ल .........बहुत-बहुत बधाई कपूर साहब .........
तिलक जी ख़ूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों बधाइयां|
इधर इक शम्अ तो उस ओर परवाना भी होता था
नसीबे-इश्क में मिलना-ओ-मिट जाना भी होता था।
बहुत खूब ..ये तो पुरानी रीत है..लाजवाब शेर
अरे साकी हिकारत से हमें तू देखता क्या है
हमारी ऑंख की ज़ुम्बिश पे मयखाना भी होता था।
वाह!!मज़ा आ गया ..कमाल का शेर
समय के साथ ये सिक्का पुराना हो गया तो क्या
कभी दरबार में लोगों ये नज़राना भी होता था।
बिलकुल जी बिलकुल
हमारे बीच का रिश्ता हुआ क्यूँ तल्ख अब इतना
कभी मेरी मुहब्ब्त में वो दीवाना भी होता था।
बहुत खूब
कभी जब याद करता हूँ तो मुझको याद आता है
हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।
गिरह बांधने का बेहतरीन नमूना| बहुत खूब
भला क्यूँ भीड़ में इस शह्र की हम आ गये लोगों
मुहब्बत कम नहीं थी गॉंव में दाना भी होता था।
वाह!!! बहुत पीड़ा झलकती है इस शेर में ..वाकई में यही हम सबकी भी पीड़ा है|
सुनाये क्या नया 'राही', ठहर कर कौन सुनता है
हमें जब लोग सुनते थे तो अफ़साना भी होता था।
वाह इस मकते पे तो हजारों शेर कुर्बान| कितनी सीधी सी बात है पर कितनी गहरी|
ढेरों दाद और मुबारकबाद|
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//जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था// बेहतरीन मतला, सुन्दर गिरह !
//कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था// क्या कहने हैं धर्म भ्रा जी !
//न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था// वाह वाह वाह !
//मुझे मालूम तुम पति से कहोगी एक दिन हँसकर
फटे जूतों में मेरा एक दीवाना भी होता था// वाह वाह - गोया कि फिर कोई चोट उभर आई है ?
//जहाँ फाँसी चढ़ी ममता जहाँ गोली लगी सच को
जहाँ पर न्याय था घायल वहीं थाना भी होता था// बेहतरीन ख्याल भाई !