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Posted on May 12, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
Posted on April 26, 2014 at 10:00pm — 9 Comments
खनकी,झनकी,लिपटी मुझसे पियकी चुटकी चटकी सि भली
हलकी फुलकी छलकी बलकी, ठुमकी सिमटी सलकी सि कली
Posted on January 21, 2014 at 11:08am — 6 Comments
ममता का चित बड़ा चंचल चपल तब
तन मे सचल मन बड़ा ही प्रचल है
रमता ये जोगी छोटा नाटा ये कपट कब
तन में उदित मन बड़ा ही स्वचल है
समता का भाव जागा मन में भी मेरे अब
तन में न हलचल मन निशचल है
तमता नहीं है भाव में रहे निचल रब
तल में अतल में वितल में अचल है
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष (सागर सुमन)
Posted on January 8, 2014 at 5:58pm — 9 Comments
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Comment Wall (3 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.......
आपका स्वागत है मित्र i
सदस्य कार्यकारिणीगिरिराज भंडारी said…
स्वागत है , आशीष भाई !! मेरा भी असली सरनेम श्रीवास्तव है, भंडारी ,खैरागढ़् के राजा द्वारा प्रदत्त उपाधी है!