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indravidyavachaspatitiwari commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post धुँआँ उठा है नफ़रत का (नवगीत)
"राजनीति को लेकर अच्छी कविता बनी है। शुभ कामना"
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indravidyavachaspatitiwari commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल : लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम....
"अच्छा व्यंग्य मय ग़ज़ल है। बधाई"
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indravidyavachaspatitiwari commented on AMAN SINHA's blog post मैं जिया हूँ दो दफा
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indravidyavachaspatitiwari replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-145
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indravidyavachaspatitiwari replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-145
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indravidyavachaspatitiwari commented on AMAN SINHA's blog post ले चल अपने संग हमराही
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indravidyavachaspatitiwari commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कभी तो पढ़ेगा वो संसार घर हैं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"जमाने को अच्छा अगर कर न पाये, ग़ज़ल के लिए धन्यवाद।करता कहना।काश सभी ऐसा सोचते?"
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indravidyavachaspatitiwari commented on Saurabh Pandey's blog post पाँच दोहे : उच्छृंखल संकोच // -- सौरभ
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indravidyavachaspatitiwari commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जाते हो बाजार पिया (नवगीत)
"मंहगाई पर कटाक्ष करने के लिए आपको बधाई। इतनी सुंदर कविता से मन प्रसन्न हो गया।"
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indravidyavachaspatitiwari commented on Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s blog post ये भँव तिरी तो कमान लगे----ग़ज़ल
"बहुत बढ़िया गजल है। मन प्रसन्न हो गया। "
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Profile Information

Gender
Male
City State
ballia utter predesh
Native Place
india
Profession
journlism
About me
i am simple man. i want peacefull nature

Indravidyavachaspatitiwari's Blog

जाम का झाम

गोलम्बर पर वह खड़ा था। अपनी गाड़ी का इंजन बंद कर दिया। जब सामने को निगाह फैलाई तो देखता है कि आंख के आगे जो गाड़ी खड़ी है उससे आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए उसके पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सामने से कुछ गाड़ियां आगे को बढीं लेकिन वह जस का तस ही था। उसकी बाध्यता थी कि वह आगे की गाड़़ी को हटाकर आगे को नहीं जा सकता था। पीछे की तरफ कुछ दूर पर एम्बुलैन्स के हार्न की आवाज सुनाई दे रही थी।

चैराहे पर जाम का दबाव कम हुआ। वह भी आगे बढ़ गया। लेकिन संयोग से उसे थोड़ी दूर जाने पर…

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Posted on February 27, 2019 at 4:30pm — 2 Comments

समझ

मंदिर के भीतर भीड़ उमड़ रही थी। तिल धरने की जगह नहीं बची थी। सभी को अपनी धुन लगी थी। सभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे और चाहते थे कि उनका जल मूर्ति पर चढ़ जाय जिससे उन्हें बाहर निकलने का मौका मिले। औरतों का रास्ता दूसरी तरफ से था। औरते उसी तरफ से आ कर मूर्ति का दर्शन पूजन कर रही थीं। मरछही भी उन्हीं महिलाओं में शामिल थी। आगे बढ़ रही थी पीछे से धक्का लग रहा था। वह जब मूर्ति के सामने आई और उसने अपना जल गिराया। उसके बाद सिर नवाकर आशीष मांगा। मरछही ने जब सिर उठाकर मूर्ति के अलावा पहली बार देखा तो… Continue

Posted on March 26, 2018 at 6:14am — 2 Comments

आशा का पौधा

एक पौधा हमने रोपा था

सात वर्ष पहले

सोचा था वह

बढेंगा , फूलेगा, फलेगा।

धीरे-धीरे

उसमें आया विकास का

बवंडर

जो हिला गया

चूल-चूल उस वृक्ष के

जिसके लिए हम सोच रहे थे

कि कैसे उसे जड़ से

उखाड़ फेंके

एक ही झटके से उखड़ कर

धराशायी हो गया

हमने चैन की सांस ली

उस तरफ देखा तो

हमारा पौधा जो

अभी नाबालिग बच्चा था

अपनी हरियाली लिए

धीरे-धीरे झूम रहा था

हमें यह देख कर प्रसन्नता हुयी

उससे आशा की…

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Posted on April 25, 2017 at 7:30am — 2 Comments

धोखा न देना

सीमा पार से आके तुमने हमको जो ललकारा है

भागो तुम उस पार चलो यह भारतवर्ष हमारा है।

आये दिन जो तुम करते रहते हो उत्पात यहां

अब हम नहीं सहेंगे यह सब यह संकल्प हमारा है।

ऐसा क्या व्यवहार तुम्हारा जो कहके जाते हो पलट

अपनी सीमा पर है नहीं नियंत्रण यह दुर्भाग्य तुम्हारा है।

सरहद पर जो आते हैं करते स्वागत है हम उन का

मित्र तुम्हारे चरणों में यह झुका शीश हमारा है।

आये हो तो रहो यहां होकरके निर्भीक मगर

धोखा देने वालों पर गिरता फिर खड्ग…

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Posted on October 15, 2016 at 6:19am — 3 Comments

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At 2:26am on September 12, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

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 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

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