Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 26, 2014 at 2:48pm — 8 Comments
नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥
पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥
निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥
अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥
लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥
मौलिक व अप्रकाशित
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 22, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 19, 2014 at 12:00pm — 22 Comments
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